Here is an essay on the ‘Production Function’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Production Function’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on the Production Function


Essay Contents:

  1. उत्पादन फलन की परिभाषा (Introduction to the Production Function)
  2. उत्पादन फलन का अभिप्राय (Meaning of the Production Function)
  3. उत्पादन फलन की मान्यताएँ (Assumptions of the Production Functions)
  4. उत्पादन फलन की विशेषताएँ (Characteristics of the Production Functions)
  5. अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उत्पादन फलन (Short-Term and Long-Term Production Function)
  6. कॉब-डगलस उत्पादन फलन (Cobb-Douglas Production Function)
  7. ‘अनुपात’ एवं ‘पैमाने’ की अवधारणाएँ (Concepts of ‘Proportion’ and ‘Scale’)


Essay # 1. उत्पादन फलन की परिभाषा (Introduction to the Production Function):

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एक व्यावसायिक फर्म को अपनी उत्पादन क्रिया सम्पादित करने के लिए अनेक उत्पत्ति के साधनों को एकत्रित करना पड़ता है । दूसरे शब्दों में, ”एक व्यावसायिक फर्म द्वारा उत्पादन करने के लिए जिन स्रोतों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार उत्पत्ति के साधन (Factors of Production) कहा जाता है ।”

आधुनिक वर्गीकरण में उत्पत्ति के साधनों को चार भागों में बाँटा जा सकता है – भूमि (Land), श्रम (Labour), पूँजी (Capital) एवं संगठन (Organization) । इन उत्पत्ति के साधनों को उपादान (Inputs) के नाम से जाना जाता है ।

उत्पादन प्रक्रिया में इन उत्पादनों को एक निश्चित अनुपात में दी गयी उत्पादन तकनीक के अनुसार मिलाया जाता है तथा इन उपादानों की पारस्परिक क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप जो भी उत्पादन होता है उसे हम उत्पादन (Output) के नाम से पुकारते हैं ।

एक दी गई तकनीक के अन्तर्गत उपादानों के विभिन्न संयोग एवं उनसे प्राप्त होने वाले उत्पादनों के भौतिक सम्बन्ध (Physical Relationship) को हम उत्पादन फलन (Production Function) कहते हैं ।


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Essay # 2. उत्पादन फलन का अभिप्राय (Meaning of the Production Function):

उपादानों (Inputs) एवं उत्पादनों (Outputs) के फलनात्मक सम्बन्ध (Functional Relationship) को उत्पादन फलन कहा जाता है । उत्पादन फलन हमें यह बतलाता है कि समय की एक निश्चित अवधि में उपादानों के परिवर्तन से उत्पादन आकार में किस प्रकार और कितनी मात्रा में परिवर्तन होता है ।

इस प्रकार उपादानों की मात्रा और उत्पादन की मात्रा के भौतिक सम्बन्ध को उत्पादन फलन कहा जाता है । उत्पादन फलन केवल भौतिक मात्रात्मक सम्बन्ध पर आधारित है, इसमें मूल्यों का समावेश नहीं होता ।

प्रो. लेफ्टविच के शब्दों में, ”उत्पादन फलन का अभिप्राय फर्म के उचित साधनों और प्रति समय इकाई वस्तुओं और सेवाओं के बीच का भौतिक सम्बन्ध है जबकि मूल्यों को छोड़ दिया जाये ।”

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गणितीय रूप में, X = f (A, B, C, D)

जहाँ X फर्म के उत्पादन तथा A, B, C तथा D विभिन्न उत्पत्ति के साधनों को बता रहे हैं ।

इस प्रकार उत्पादन फलन एक आर्थिक नहीं वरन् तकनीकी समस्या है । किसी फर्म का उत्पादन फलन उत्पादन तकनीक (Technique of Production) पर आधारित होता है । एक फर्म उस उत्पादन तकनीक का चुनाव करेगी जिसकी सहायता से वह अपने पास उपलब्ध उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण विदोहन (Optimum Utilization) करते हुए अपने उत्पादन को आधिकतम कर सके ।

उत्पादन तकनीक का सुधार निश्चित रूप से उत्पादन में वृद्धि करेगा । इस प्रकार सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि ”उत्पादन फलन एक ऐसी-सारणी है जो दी गयी उत्पादन तकनीक के अन्तर्गत उत्पत्ति के साधनों को एक निश्चित संयोग द्वारा उत्पादित अधिकतम उत्पादन को प्रदर्शित करती है ।”

उत्पादन फलन में यदि स्थिर तथा दी गयी तकनीक को सम्मिलित कर लिया जाये तब,

X = f [A, B, C, D; T]

जहाँ T उपलब्ध तकनीक का सूचक है ।

प्रत्येक व्यावसायिक फर्म का अपना एक उत्पादन होता है जो मुख्यतः तकनीकी स्तर एवं प्रबन्धकीय और संगठन योग्यता से निर्धारित होता है । जब किसी फर्म के संगठन एवं तकनीकी स्तर में परिवर्तन होता है तब फर्म के उत्पादन फलन में तद्नुसार परिवर्तन हो जाता है ।


Essay # 3. उत्पादन फलन की मान्यताएँ (Assumptions of the Production Functions):

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(1) उत्पादन फलन का सम्बन्ध किसी निश्चित समयावधि से होता है ।

(2) उत्पादन फलन के सभी उत्पादन अल्पकाल में परिवर्तित नहीं किये जा सकते अर्थात् अल्पकाल में फर्म के कुछ साधन स्थिर तथा अन्य परिवर्तनशील होते हैं ।

(3) दीर्घकाल में उत्पादन फलन के सभी उपादान परिवर्तनशील होते हैं ।

(4) तकनीकी स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होता तथा फर्म सर्व श्रेष्ठ तकनीक अपनाती है ।

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(5) उत्पत्ति के साधनों को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है ।


Essay # 4. उत्पादन फलन की विशेषताएँ (Characteristics of the Production Functions):

(a) उत्पादन फलन उत्पत्ति के साधनों एवं उत्पादन के भौतिक मात्रात्मक सम्बन्ध को बताता है । वस्तुतः उत्पादन फलन एक अभियान्त्रिक धारणा (Engineering Concept) है ।

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(b) उत्पादन फलन में उपादानों एवं उत्पादन की कीमतों का कोई समावेश नहीं होता । इस प्रकार उत्पादन फलन उपादानों एवं उत्पादन मूल्यों से पूर्ण स्वतन्त्र होता है ।

(c) उत्पादन फलन का सम्बन्ध एक समयावधि से होता है । एक समयावधि में एक उत्पादन फलन हो सकता है जो समय की अवधि परिवर्तित होने पर परिवर्तित हो सकता है ।

(d) उत्पादन फलन स्थिर तकनीकी दशा पर आधारित है । तकनीकी दशाओं के परिवर्तित हो जाने पर उत्पादन फलन भी परिवर्तित हो जाता है तथा फर्म को नवीन उत्पादन फलन प्राप्त होता है ।

(e) जब फर्म अपने उत्पादन फलन के कुछ उपादानों को स्थिर रखती है तथा कुछ को परिवर्तित करती है तब इसे अल्पकालीन उत्पादन फलन अथवा परिवर्तनशील अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions) कहते हैं ।

(f) फर्म दीर्घकाल में जब सभी उपादानों को परिवर्तित कर लेती है तब ऐसे उत्पादन फलन को दीर्घकालीन उत्पादन फलन अथवा पैमाने के प्रतिफल (Returns to Scale) कहते हैं ।

(g) उत्पत्ति के साधनों में स्थानापन्नता का गुण होने के कारण एक ही उत्पादन फलन के लिए एक साधन के स्थान पर दूसरे साधन का कम-अधिक मात्रा में प्रयोग किया जा सकता है अर्थात् उत्पादन की एक ही मात्रा उत्पत्ति साधनों के अनेक एवं भिन्न-भिन्न संयोगों से प्राप्त की जा सकती है ।

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(h) उत्पादन फलन तकनीक अथवा अभियान्त्रिकी सारांश प्रस्तुत करता है ।


Essay # 5. अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उत्पादन फलन (Short-Term and Long-Term Production Function):

उत्पादन फलन में समय तत्व (Time Element) एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है । उत्पादन फलन की प्रकृति अल्पकाल एवं दीर्घकाल में एकसमान नहीं रहती । अल्पकाल का आभिप्राय उस समयावधि से है जिसमें उत्पत्ति के समस्त साधनों को परिवर्तित नहीं किया जा सकता ।

अल्पकाल में सूक्ष्म समयावधि के कारण जिन उत्पत्ति के साधनों को परिवर्तित नहीं किया जा सकता उन्हें स्थिर साधन (Fixed Factors) कहा जाता है । अल्पकाल में कुछ उत्पत्ति के साधन परिवर्तनशील हैं । मुख्यतः पूँजी, पूँजीगत उपकरण, भूमि, उत्पादन तकनीक आदि अल्पकाल में स्थिर हैं, जबकि श्रम की इकाइयाँ परिवर्तनीय हो सकती हैं ।

अल्पकाल में उत्पादन के संयन्त्र अथवा प्लाण्ट का आकार (Size of the Plant) अपरिवर्तित रहता है । इस प्रकार अल्पकालीन उत्पादन फलन में कुछ उत्पत्ति के साधन स्थिर होते हैं तथा कुछ परिवर्तनीय । परिवर्तनशील साधनों में परिवर्तन करके उत्पादन स्तर में परिवर्तन किया जा सकता है । इसे परिवर्तनशील अनुपात नियम कहते हैं ।

इसके विपरीत, दीर्घकाल का अभिप्राय उस लम्बी समयावधि से है जिसमें फर्म अपने उत्पादन क्षेत्र में प्रयोग होने वाले सभी उत्पत्ति के साधनों को परिवर्तित कर सकती है । दूसरे शब्दों में, दीर्घकाल में कोई भी उत्पत्ति का साधन स्थिर नहीं रहता । अल्पकाल की भाँति दीर्घकाल में उत्पत्ति के साधनों का स्थिर एवं परिवर्तनीय साधनों के रूप में विभाजन नहीं किया जाता ।

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दीर्घकाल में उत्पादन पैमाने (Scale of Production) को पूर्णतः परिवर्तित किया जा सकता है । दीर्घकालीन उत्पादन फलन में फर्म के पास उत्पत्ति के साधनों के चुनाव का पर्याप्त समय होता है और फर्म जिस रूप में चाहे, उत्पत्ति के साधन को परिवर्तित कर सकती है ।

दीर्घकाल में एक फर्म अपने उत्पादन पैमाने (Scale of Production) को परिवर्तित करने के लिए उत्पत्ति के साधनों को सुविधा तथा आवश्यकतानुसार परिवर्तित कर सकती है । इसलिए दीर्घकालीन उत्पादन फलन को पैमाने के प्रतिफल (Returns of Scale) भी कहा जाता है ।

अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उत्पादन फलन में अन्तर:

अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उत्पादन फलन के बीच निम्नलिखित अन्तर पाया जाता है:

a. अल्पकालीन उत्पादन फलन के अन्तर्गत एक उत्पादक के पास इतना कम समय होता है कि वह एक साथ उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकता, अतः उत्पादन की प्रक्रिया में कुछ साधनों को स्थिर रखकर एक या एक से अधिक साधनों में ही परिवर्तन किया जाता है ।

दीर्घकालीन उत्पादन फलन के अन्तर्गत उत्पादक के पास पर्याप्त समय रहता है फलतः वह वांछित उत्पादन प्राप्त करने के लिए उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकता है अर्थात् वह उत्पादन के पैमाने को ही बदल सकता है ।

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b. अल्पकालीन उत्पादन फलन के अन्तर्गत एक उत्पादक अपनी वस्तु की पूर्ति को केवल एक सीमा तक ही परिवर्तित कर सकता है, जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन में पूर्ति को माँग के अनुरूप बढ़ाया अथवा घटाया जा सकता है ।

c. अल्पकालीन उत्पादन फलन में समय की कमी के कारण साधनों का आपसी संयोग-अनुपात बदल जाता है, जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन में साधनों में एक साथ समान अनुपात में वृद्धि अथवा कमी की जाती है ।

d. अल्पकालीन उत्पादन फलन के अन्तर्गत उत्पादन के परिवर्तनशील साधनों की कीमतें स्थिर नहीं रहती हैं । माँग एवं पूर्ति के अनुसार कीमतें कम या अधिक हो सकती हैं । दीर्घकालीन उत्पादन-फलन में उत्पादित वस्तु की कीमत एवं उत्पादन के विभिन्न साधनों की कीमतों को स्थिर मानकर चला जाता है ।

e. अल्पकालीन उत्पादन फलन ‘परिवर्तनशील अनुपातों का नियम’ है जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन ‘पैमाने के प्रतिफल का नियम’ है ।

f. अल्पकालीन उत्पादन फलन वास्तविक है, इसे देखा जा सकता है जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन को किसी नियम के रूप में नहीं देखा जा सकता है ।


Essay # 6. कॉब-डगलस उत्पादन फलन (Cobb-Douglas Production Function):

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सुप्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री प्रो. कॉब तथा प्रो. डगलस (Prof. C.W. Cobb & P.H. Douglas) ने अमेरिका में (1890 से 1922 के दौरान) उत्पादन पर श्रम तथा पूँजी का प्रभाव ज्ञात करने के प्रयास में एक सूत्र का आविष्कार किया जो श्रम तथा पूँजी का उत्पादन के साथ ठीक-ठीक सम्बन्ध व्यय कर सके ।

इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उभय अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत फलन का सूत्र निम्न प्रकार है:

जहाँ P = उत्पादन मात्रा,

b, K = धनात्मक स्थिरांक,

L = श्रम,

C = पूँजी ।

प्रो. कॉब तथा प्रो. डगलस ने इस फलन का प्रयोग दिए हुए आँकड़ों पर किया । यही कारण है कि इसे कॉब-डगलस फलन के नाम से जाना जाता है ।

मान्यताएँ (Assumptions):

इस फलन के चुनाव में निम्न मान्यताएँ निहित हैं:

(1) उत्पादन के केवल दो ही उपादान हैं – पूँजी (Capital) तथा श्रम (Labour) ।

(2) श्रमिकों की उत्पादन शक्ति (अध्ययन किए जाने वाले वर्ष में) निश्चित एवं स्थिर है ।

(3) पूँजीगत पदार्थों की भी उत्पादन शक्ति (अध्ययन किए जाने वाले वर्ष में) निश्चित एवं स्थिर है ।

(4) यदि श्रम तथा पूँजी की मात्रा को m गुना बढ़ा दिया जाए तो उत्पादन की मात्रा भी m गुना हो जाती है ।

P = bLKC1 – K

= b(mL)K(mC)1 – K

= mbLKC1 – K

= mP

(5) पार्ट टाइम या ओवर टाइम (Part Time or Over Time) को गणना में स्थान नहीं दिया गया है ।

कॉब-डगलस फलन: विशेषताएँ (Cobb-Douglas Function: Characteristics):

(1) इस फलन में उत्पादन के केवल दो उपादानों (श्रम एवं पूँजी) का ही अध्ययन किया गया है जबकि अर्थशास्त्र में चार उपादानों (श्रम, पूँजी, संगठन एवं साहसोद्यम) का अध्ययन किया जाता है ।

(2) श्रम अथवा पूँजी अथवा दोनों ही मात्रा शून्य होने की स्थिति में उत्पादन भी शून्य होगा । बात तर्क-संगत है क्योंकि दोनों साधनों का प्रयोग किए बिना उत्पादन नहीं हो सकता ।

कॉब-डगलस उत्पादन फलन P = bLKC1 – K में

यदि L = 0, तब P = b 0 C1 – K = 0

इसी तरह, यदि C = 0, तब P = b.LK.0 = 0

(3) यदि श्रम तथा पूँजी को किसी भी अनुपात में मिला दिया जाए तो उत्पादन धनात्मक होगा अर्थात् कुछ न कुछ उत्पादन अवश्य होगा ।

(4) कॉब-डगलस उत्पादन फलन एक रेखीय समरूप उत्पादन फलन है और यह पैमाने के स्थिर प्रतिफल का संकेतक है ।

कॉब-डगलस उत्पादन फलन पैमाने के स्थिर प्रतिफल को दर्शाता है । इसे सिद्ध करने के लिए L और C की मात्राओं को m गुना किया जाता है तब बढ़ा हुआ उत्पादन P’ होगा ।

P’ = b(mL)K . (mC)1 – K

= mbLK . C1 – K

= mP

इस तरह मूल उत्पादन P से बढ़कर P’ हो गया है अर्थात् जब आगतों को m गुना बढ़ा दिया जाता है तब उत्पादन भी m गुना बढ़ जाता है । इस प्रकार, कॉब-डगलस उत्पादन फलन पैमाने के स्थिर प्रतिफल को दर्शाता है ।


Essay # 7. ‘अनुपात’ एवं ‘पैमाने’ की अवधारणाएँ (Concepts of ‘Proportion’ and ‘Scale’):

अनुपात का विचार अल्पकालीन है क्योंकि अल्पकाल में उत्पत्ति के स्थिर साधनों का परिवर्तनशील साधन के साथ अनुपात बदलता रहता है । उत्पत्ति ह्रास नियम (Law of Diminishing Returns) इसी ‘अनुपात’ की विचारधारा पर आधारित है । इस प्रकार, स्थिर साधनों के साथ परिवर्तनशील साधन के निश्चित सहयोग अथवा संयोग को ‘अनुपात’ कहते हैं ।

‘पैमाने’ का विचार दीर्घकालीन है क्योंकि दीर्घकाल में स्थिर साधन भी परिवर्तनशील हो जाते हैं तथा उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को आवश्यकतानुसार एवं इच्छनुसार परिवर्तित किया जा सकता है ।

जब उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग अनुपात को स्थिर रखकर सभी साधनों में वृद्धि की जाती है अर्थात् जब सभी साधनों को एक ही अनुपात में इस प्रकार बढ़ाया जाता है कि साधनों का प्रयोग अनुपात स्थिर रहता है तब इसे ‘पैमाने की वृद्धि’ कहा जाता है ।

इसी प्रकार, जब उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग अनुपात को स्थिर रखकर सभी साधनों में कमी की जाती है तब इसे ‘पैमाने की कमी’ कहा जाता है ।

‘अनुपात’ एवं ‘पैमाने’ की अवधारणाओं को चित्रों की सहायता से भी स्पष्ट किया जा सकता है ।

चित्र 1 में अनुपात की विचारधारा स्पष्ट की गयी है । चित्र में RS रेखा X-अक्ष के समानान्तर है जिसमें साधन Y स्थिर है तथा साधन X परिवर्तनशील । यदि उत्पादक उत्पादन को 50 इकाइयों से 150 इकाइयों तक बढ़ाना चाहता है तब उसे RS रेखा पर दायीं ओर चलना पड़ेगा ।

जैसे-जैसे उत्पादक RS रेखा पर दायीं ओर चलता जाता है वैसे-वैसे साधन Y तथा साधन X का प्रयोग अनुपात बदलता जाता है क्योंकि साधन Y स्थिर रहता है तथा साधन X की मात्रा बढ़ती जाती है । इस प्रकार RS रेखा के विभिन्न बिन्दु साधन X तथा Y के विभिन्न प्रयोग अनुपातों को बतलाते हैं ।

इसी प्रकार, TQ रेखा Y-अक्ष के समानान्तर एक खड़ी रेखा है जो साधन X की स्थिर मात्रा तथा साधन Y की परिवर्तनशील मात्रा के बदलते अनुपातों को स्पष्ट करती है ।

चित्र 2 में पैमाने (Scale) की विचारधारा को स्पष्ट किया गया है । चित्र में OS एक पैमाना रेखा है जो अपने विभिन्न बिन्दुओं पर साधन X तथा साधन Y के एक निश्चित एवं स्थिर प्रयोग अनुपात को बताती है ।

यदि उत्पादक उत्पादन में 50 इकाइयों से 150 इकाइयों तक वृद्धि करना चाहता है तो साधनों के प्रयोग अनुपात को स्थिर रखते हुए दोनों साधनों की मात्रा में वृद्धि करके अर्थात् पैमाने में वृद्धि करके उत्पादन में वृद्धि कर सकता है ।

अर्थात् पैमाने में परिवर्तन (कमी अथवा वृद्धि) की दशा में,

इस प्रकार, मूलबिन्दु से खींची गयी कोई भी रेखा पैमाने (Scale) को बताती है ।