Read this article in Hindi to learn about the conditions for determining competitve price under different time periods.

A. अति अल्पकाल में कीमत-निर्धारण (Price Determination in Very Short Period):

पूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में जो कीमत निर्धारित होती है उसे बाजार कीमत (Market Price) भी कहा जाता है । अति अल्पकाल में वस्तु की पूर्ति पूर्ण रूप से स्थिर रहती है ।

अति अल्पकाल में उत्पादन लागत भी नहीं बदलती क्योंकि इस समयावधि में उत्पत्ति के साधनों की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता । दूसरे शब्दों में, अति अल्पकाल में वस्तु की कीमत केवल माँग दशाओं से प्रभावित होती है ।

अति अल्पकाल में पूर्ति वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करती है ।

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वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं:

1. नाशवान वस्तुएँ (Perishable Goods) – जैसे – हरी सब्जी, मछली, गोश्त आदि ।

2. टिकाऊ वस्तुएँ (Durable Goods) – जैसे – गेहूँ, चाय, आलू, प्याज आदि ।

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1. नाशवान वस्तुएँ (Perishable Goods):

नाशवान वस्तुओं के लिए अति अल्पकालीन पूर्ति वक्र पूर्णतया कीमत निरपेक्ष (Perfectly Inelastic) होता है अर्थात् Y-अक्ष के समानान्तर एक खड़ी रेखा होती है ।

2. टिकाऊ वस्तुएँ (Durable Goods):

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टिकाऊ वस्तुओं के लिए अति अल्पकालीन पूर्ति वक्र कुछ समय तक तो बायें से दायें ऊपर चढ़ता हुआ होता है क्योंकि विक्रेता वस्तु को कुछ समय तक स्टॉक में रखकर एक उचित कीमत की प्रतीक्षा कर सकता है किन्तु स्टॉक में वस्तु अनिश्चित काल के लिए नहीं रखी जा सकती ।

इस विशेषता के कारण टिकाऊ वस्तु का पूर्ति वक्र एक कीमत तक तो कीमत-सापेक्ष रहता है किन्तु बाद में पूर्णतया कीमत-निरपेक्ष हो जाता है ।

चित्र 9 में नाशवान वस्तु के लिए बाजार कीमत-निर्धारण स्पष्ट किया गया है । SS पूर्ति रेखा है जो पूर्णतया बेलोच है अर्थात् पूर्ति को OQ से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता । माँग DD होने पर सन्तुलन E बिन्दु पर होगा जहाँ वस्तु की कीमत OP होगी ।

माँग में वृद्धि होने पर माँग वक्र D1D1 हो जाता है किन्तु पूर्ति न बढ़ायी जा सकने के कारण सन्तुलन बिन्दु E1 तथा वस्तु की कीमत OP1 हो जाती है ।

इसके विपरीत माँग की कमी होने पर माँग वक्र D2D2 के रूप में परिवर्तित होता है तथा वस्तु की कीमत घटकर OP2 रह जाती है किन्तु बाजार कीमत OR से कम नहीं होती अर्थात् OR कीमत से नीचे पूर्ति शून्य होने के कारण पूर्ति वक्र को टूटी रेखा SQ द्वारा दिखाया गया है । कीमत OR से कम पर विक्रेता अपना सामान बेचने को तैयार नहीं होता ।

प्रत्येक विक्रेता अपनी वस्तु की एक न्यूनतम कीमत (Minimum Price) तय करता है तथा इस कम कीमत पर वह पूर्ति रोक देता है । यही न्यूनतम कीमत सुरक्षित कीमत (Reserve Price) कहलाती है । सुरक्षित कीमत साधारणतः वस्तु की उत्पादन लागत के समान होती है जिसके कारण विक्रेता अपनी लागत से कम कीमत पर वस्तु की पूर्ति नहीं करता ।

सुरक्षित कीमत निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है:

(i) वस्तु की भविष्य में कीमत बढ़ने की आशा । कीमत बढ़ने की आशा मूल्य को निश्चित रूप से बढ़ायेगी ।

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(ii) वस्तु की उत्पादन लागत ।

(iii) वस्तु की प्रकृति – नाशवान अथवा टिकाऊ वस्तुएँ । नाशवान वस्तुओं के लिए सुरक्षित कीमत कम होगी तथा टिकाऊ वस्तुओं के लिए कीमत अपेक्षाकृत अधिक होगी ।

चित्र 10 में टिकाऊ वस्तुओं का पूर्ति वक्र SRS’ के रूप में दिखाया गया है । OS वह सुरक्षित कीमत है जिससे कम पर विक्रेता वस्तु की पूर्ति नहीं करेगा । बिन्दु S से बिन्दु R तक पूर्ति वक्र लोचदार है किन्तु बिन्दु R से बिन्दु S’ तक पूर्णतया बेलोचदार हो जाता है ।

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वस्तु की कीमत OS से कम होने पर विक्रेता उसे विक्रय न करके अपने स्टॉक में रखना पसन्द करेगा । सुरक्षित कीमत से अधिक वस्तु कीमत होने पर विक्रेता वस्तु का विक्रय आरम्भ करेगा किन्तु विक्रेता किसी भी दशा में वस्तु की पूर्ति OQ2 से अधिक नहीं बढ़ा सकेगा क्योंकि अति अल्पकाल में एक निश्चित पूर्ति ही की जा सकती है ।

जब वस्तु की माँग DD’ है तब वस्तु की कीमत OP होती है । माँग के बढ़कर D2D2‘ हो जाने पर वस्तु कीमत OP2 हो जाती है तथा माँग के घटकर D1D1‘ हो जाने पर वस्तु कीमत OP1 रह जाती है । OP1 कीमत पर विक्रेता समस्त स्टॉक को बेचने को तैयार नहीं है, वह केवल OQ1 पूर्ति विक्रय हेतु बाजार में प्रस्तुत करता है ।

बिन्दु R पर सन्तुलन के समय वह OP2 कीमत पर बाजार में वह समस्त पूर्ति OQ2 बेचने को तैयार है । इसके बाद माँग की प्रत्येक वृद्धि वस्तु की कीमत को बढ़ायेगी इगेंकि पूर्ति की मात्रा स्थिर हो चुकी है ।

B. अल्पकाल में कीमत-निर्धारण (Price Determination in Short Period):

अल्पकाल में उत्पादक उत्पत्ति के सभी साधनों को आवश्यकतानुसार परिवर्तित नहीं कर सकता । अल्पकाल में जब तक वस्तु की कीमत औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) के बराबर या उससे अधिक रहती है तब तक हानि की स्थिति में भी उत्पादक उत्पादन को जारी रखेगा किन्तु जब वस्तु की कीमत AVC से भी कम हो जाती है तब वस्तु की पूर्ति शून्य हो जायेगी क्योंकि उत्पादक हानि से बचने के लिए उत्पादन बन्द कर देता है ।

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चित्र 11 अल्पकालीन कीमत-निर्धारण की स्थिति को स्पष्ट करता है । चित्र में उद्योग का आरम्भिक माँग वक्र DD प्रदर्शित किया गया है । SRS अल्पकालीन पूर्ति वक्र है । सन्तुलन बिन्दु E है जहाँ वस्तु की OP कीमत तथा OQ उत्पादन मात्रा निर्धारित होती है ।

व्यक्तिगत फर्म इसी OP कीमत को दिया मानकर अपनी लागतों के अनुसार उत्पादन मात्रा निर्धारित करेगी । यदि माँग में वृद्धि के फलस्वरूप माँग वक्र D1D1 हो जाता है तो स्थिर साधनों पर परिवर्तनशील साधनों की वृद्धि द्वारा उत्पादन पूर्ण प्रतियोगिता के अल्पकाल में OQ1 तक बढ़ाया जा सकता है तथा वस्तु की नई कीमत OP1 होगी ।

दूसरी ओर माँग की कमी के कारण नया माँग वक्र D2D2 वस्तु की कीमत को OP2 तक घटायेगा तथा उत्पादन घटकर OQ2 रह जायेगा । व्यक्तिगत फर्में अब OP2 कीमत को दिया मानकर अपनी उत्पादन मात्रा निर्धारित करेंगी । फर्म की AVC चित्र में OP3 द्वारा दिखायी गयी है ।

जब तक उद्योग में OP3 से अधिक वस्तु की कीमत तय होती रहेगी फर्म पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन अल्पकाल में जारी रखेगी । यदि वस्तु की कीमत OP3 से कम होती है तब फर्म पूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में उत्पादन बन्द कर देगी ।

इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में माँग वक्र तथा अल्पकालीन पूर्ति रेखा के कटाव बिन्दु (Point of Intersection) पर अल्पकालीन कीमत निर्धारित होती है किन्तु इस कीमत पर उद्योग के अन्तर्गत कार्य कर रही फर्म अल्पकाल में तभी उत्पादन करेगी जब औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) वस्तु की कीमत के बराबर या उससे कम हो ।

C. दीर्घकाल में कीमत-निर्धारण (Price Determination in Long Period):

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दीर्घकाल में माँग एवं पूर्ति में दीर्घकालीन सन्तुलन द्वारा जो सन्तुलन कीमत प्राप्त होती है उसे सामान्य कीमत (Normal Price) कहा जाता है । एक उद्योग तथा उसमें कार्य कर रही फर्मों के मध्य एक फर्म-उद्योग सम्बन्ध होता है ।

दीर्घकाल इतना पर्याप्त समय है जिसमें उद्योग की फर्मों को लाभ होने की दशा में बाहर की फर्में उद्योग में प्रवेश के लिए आकर्षित होंगी तथा हानि की दशा में फर्में उद्योग को छोड़कर बाहर चली जायेंगी । एक उद्योग सन्तुलन में तब होगा जब फर्मों में उस उद्योग विशेष में प्रवेश तथा उससे बाहर जाने की कोई प्रवृत्ति न हो ।

इसका अभिप्राय है कि उद्योग में कार्य कर रही फर्मों को इतना लाभ अवश्य मिलना चाहिए जो उन फर्मों को उद्योग विशेष में कौर्यशील रख सके । साथ ही साथ उस उद्योग विशेष में इतना लाभ नहीं होना चाहिए जिससे बाहर की फर्में उस उद्योग विशेष की ओर आकर्षित हों ।

जब उपर्युक्त दोनों शर्तें पूरी होंगी तभी उद्योग ऐसे सन्तुलन में पहुँच पायेगा जहाँ उद्योग में फर्मों के आगमन तथा बहिर्गमन की कोई प्रवृत्ति न हो । इस प्रकार उद्योग की फर्मों के उत्पादकों को एक न्यूनतम धनराशि लाभ के रूप में (Minimum Amount in the Form of Profit) अवश्य मिलनी चाहिए ताकि वह उद्योग को छोड़कर न जायें तथा उसी में कार्य करती रहें । यही न्यूनतम धनराशि ‘सामान्य लाभ’ (Normal Profit) कहलाती है ।

समय तत्व की तीनों दशाओं की तुलना (Comparison of all Three Stages of Time Element):

पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत-निर्धारण वस्तु की माँग तथा वस्तु की पूर्ति दशाओं के आधार पर होता है । पूर्ति वक्र की लोच समयावधि पर निर्भर करती है । जैसे-जैसे समयावधि बढ़ती जाती है वैसे-वैसे पूर्ति वक्र अधिक लोचदार होता जाता है । समयावधि का वस्तु की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका विश्लेषण चित्र 12 में किया गया है ।

चित्र में,

MPS बाजार काल पूर्ति वक्र (Market Period Supply Curve):

यह वक्र पूर्णतया बेलोच है अर्थात् इस समयावधि में पूर्ति OQ1 से अधिक नहीं बढ़ायी जा सकती ।

SRS अल्पकाल पूर्ति वक्र (Short-Term Supply Curve):

यह वक्र बेलोच है किन्तु पूर्ण बेलोच नहीं अर्थात् इसकी लोच e < 1 है । दूसरे शब्दों में, लोच की सीमा तक पूर्ति बढ़ायी जा सकती है ।

LRS दीर्घकालीन पूर्ति वक्र (Long-Term Supply Curve):

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यह वक्र अत्यधिक लोचदार है (e > 1) अर्थात् माँग के अनुसार पूर्ति समायोजित की जा सकती है ।

चित्र में आरम्भ में D1D1 माँग वक्र है जिसे तीनों समयावधियों के पूर्ति वक्र अर्थात् MPS, SRS तथा LRS बिन्दु E पर काटते हैं जिसका अभिप्राय है कि आरम्भ में तीनों समयावधियों में सन्तुलन बिन्दु E पर है जिसके कारण वस्तु कीमत OP तथा वस्तु उत्पादन OQ1 निर्धारित होता है ।

दूसरी स्थिति में माना माँग बढ़कर D1D1 से D2D2 हो जाती है । अब तीनों समयावधियों में कीमत तथा उत्पादन में परिवर्तन हो जायेगा ।

परिवर्तित स्थिति में,

अति अल्पकाल अथवा बाजार काल नवीन सन्तुलन बिन्दु E1

वस्तु कीमत = OP1

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वस्तु उत्पादन = OQ1 (अपरिवर्तनीय)

अर्थात् वस्तु कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है क्योंकि पूर्ति की स्थिरता के कारण तथा माँग में वृद्धि के कारण नया सन्तुलन बिन्दु E1 हो जाता है ।

अल्पकाल नवीन सन्तुलन बिन्दु E2

वस्तु कीमत = OP2

वस्तु उत्पादन = OQ2

अर्थात् वस्तु कीमत तथा उत्पादन क्रमशः बढ़कर OP2 तथा OQ2 हो जाते हैं । चित्र से स्पष्ट है कि अल्पकालीन कीमत OP2 कम है नवीन बाजार कीमत OP1 से (OP2 < OP1) जिसका कारण है कि इस समयावधि में पूर्ति पूर्णतया बेलोच न होने के कारण कुछ समायोजित हो रही है अर्थात् OQ1 से बढ़कर OQ2 हो गयी है ।

दीर्घकाल नवीन सन्तुलन बिन्दु E3

वस्तु कीमत = OP3

वस्तु उत्पादन = OQ3

अर्थात् इस अवधि में पूर्ति लोचदार (e > 1) होने के कारण OQ1 से OQ3 तक बढ़ायी जा सकती है । पूर्ति में अधिक समायोजन हो सकने के कारण कीमत OP3, बाजार कीमत OP1 तथा अल्पकालीन कीमत OP2 दोनों से कम है ।

अर्थात्, OP3 < OP2 < OP1

इस प्रकार स्पष्ट है कि जैसे-जैसे समयावधि बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे कीमत-निर्धारण में पूर्ति का महत्व बढ़ता जा रहा है । इस व्याख्या से मार्शल ने यह भी स्पष्ट किया है कि वस्तु कीमत के निर्धारण में माँग और पूर्ति दोनों दशाएँ आवश्यक हैं किन्तु समयावधि के अनुसार माँग और पूर्ति शक्तियों का महत्व बदलता रहता है ।