Read this article in Hindi to learn about the aspects to be considered prior to price determination under monopoly market.

दीर्घकाल में एकाधिकारी बाजार में कीमत-निर्धारण (Price Determination in Long Term):

एकाधिकारी बाजार में उत्पादक का पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है । दीर्घकाल उत्पादन की वह लम्बी अवधि है जिसमें एकाधिकारी माँग दशाओं के अनुसार अपनी पूर्ति को पूर्णतः समायोजित कर लेता है ।

इसी कारण कहा जाता है कि दीर्घकाल में कीमत मुख्य रूप से पूर्ति दशाओं के आधार पर ही निर्धारित होती है । एकाधिकारी अपने लाभ अधिकतमीकरण (Profit Maximisation) के उद्देश्य के कारण बाजार में वस्तु की पूर्ति को इस प्रकार समायोजित करेगा कि उसे प्रत्येक स्थिति में लाभ (Profit) ही प्राप्त हो ।

अल्पकाल में सीमित अवधि के कारण पूर्ति का माँग के अनुसार समायोजन नहीं हो पाता जिसके कारण अल्पकालीन एकाधिकारी बाजार में लाभ, सामान्य लाभ एवं हानि, तीनों स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं किन्तु दीर्घकाल में पूर्ति के समायोजन के कारण एकाधिकारी केवल लाभ ही अर्जित करता है ।

ADVERTISEMENTS:

दीर्घकाल में बड़े पैमाने के उत्पादन के कारण प्रारम्भ में फर्म तथा उद्योग को आन्तरिक एवं बाहरी बचतें (Internal & External Economies) प्राप्त होती हैं परन्तु एक बिन्दु के बाद ये बचतें हानियाँ (Diseconomies) में बदल जाती हैं ।

जब फर्म तथा उद्योग को आन्तरिक एवं बाहरी बचतें प्राप्त होती हैं तो उत्पादन में पैमाने के बढ़ते प्रतिफल का नियम (Law of Increasing Returns to Scale) लागू होता है अर्थात् उत्पादन का आकार बढ़ने पर सीमान्त लागत क्रमशः घटती जाती है ।

जैसे-जैसे उत्पादन के आकार में वृद्धि होती जाती है और सीमान्त लागत घटती है वैसे-वैसे औसत लागत भी घटती है किन्तु औसत लागत के घटने की दर सीमान्त लागत के घटने की दर से कम होती है ।

इसी प्रक्रिया में उत्पादन मात्रा और अधिक बढ़ने पर हमें एक ऐसा आदर्श बिन्दु प्राप्त होता है जहाँ सीमान्त लागत और औसत लागत परस्पर बराबर हों । इसे हम पैमाने के स्थिर प्रतिफल (Constant Returns to Scale) का नियम कहते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

इस आदर्श बिन्दु के बाद आन्तरिक तथा बाहरी बचतें हानियों (Diseconomies) में बदल जाती हैं और पैमाने के घटते प्रतिफल का नियम (Law of Decreasing Returns to Scale) लागू हो जाता है । ऐसी दशा में सीमान्त लागत बढ़ती है, फलस्वरूप औसत लागत भी बढ़ती है परन्तु औसत लागत की तुलना में सीमान्त लागत अधिक तीव्र गति से बढ़ती है ।

दीर्घकाल में एकाधिकारी को तीनों ही दशाओं-बढ़ते प्रतिफल, स्थिर प्रतिफल एवं घटते प्रतिफल, में लाभ प्राप्त होता है ।

(i) बढ़ते प्रतिफल दशा (अथवा घटती लागत दशा) में एकाधिकारी सन्तुलन:

चित्र 6 में बढ़ते प्रतिफल (अथवा घटती लागत) दशा में एकाधिकारी सन्तुलन दिखाया गया है जहाँ AC तथा MC दोनों गिरते हुए होते हैं किन्तु MC वक्र अधिक तेजी से नीचे गिरता है । सन्तुलन दशाओं के अनुसार बिन्दु E पर एकाधिकारी सन्तुलन प्राप्त होगा जहाँ सन्तुलन की दोनों शर्तें पूरी हो रही हैं ।

सन्तुलन बिन्दु E पर,

प्रति इकाई कीमत = OP अथवा SQ

प्रति इकाई लागत = OR अथवा TQ

कुल उत्पादन = OQ

प्रति इकाई लाभ = OP – OR = PR अथवा ST

कुल लाभ = PRTS क्षेत्रफल

(ii) स्थिर प्रतिफल दशा (अथवा स्थिर लागत दशा) में एकाधिकारी सन्तुलन:

चित्र 7 में स्थिर प्रतिफल दशा में एकाधिकारी सन्तुलन दिखाया गया है जहाँ स्थिर प्रतिफल के कारण औसत लागत और सीमान्त लागत आपस में बराबर हैं ।

सन्तुलन बिन्दु E पर,

ADVERTISEMENTS:

प्रति इकाई कीमत = OP अथवा SQ

प्रति इकाई लागत = OR अथवा EQ

कुल उत्पादन = OQ

ADVERTISEMENTS:

प्रति इकाई लाभ = PR अथवा SE

कुल लाभ = PRES क्षेत्रफल

(iii) घटते प्रतिफल दशा (अथवा बढ़ती लागत दशा) में एकाधिकारी सन्तुलन:

चित्र 8 में घटते प्रतिफल दशा (अर्थात् बढ़ती लागत दशा) में एकाधिकारी सन्तुलन प्रदर्शित किया गया है । घटते प्रतिफल के कारण AC तथा MC दोनों बढ़ते हैं किन्तु MC अधिक होता है AC से ।

ADVERTISEMENTS:

सन्तुलन बिन्दु E पर,

प्रति इकाई कीमत = OP अथवा SQ

प्रति इकाई लागत = OR अथवा TQ

कुल उत्पादन = OQ

प्रति इकाई लाभ = PR अथवा ST

ADVERTISEMENTS:

कुल लाभ = PRTS क्षेत्रफल

इस प्रकार दीर्घकाल में एकाधिकारी को सभी प्रकार की लागत दशाओं में लाभ होता है ।

एकाधिकार में अल्पकाल में कीमत-निर्धारण (Price Determination in Short Term):

अल्पकाल में एकाधिकारी लाभ (Profit), सामान्य लाभ (Normal Profit) तथा हानि (Loss) तीनों स्थितियों में उत्पादन कार्य करता है । यह एक गलत धारणा है कि एकाधिकारी सदैव अल्पकाल में लाभ ही अर्जित करता है । एकाधिकारी अल्पकाल में लाभ, सामान्य लाभ या हानि किस स्थिति में काम करेगा यह बाजार के माँग वक्र और बाजार की लागत दशाओं पर निर्भर करता है ।

पूर्ण प्रतियोगिता फर्म की भाँति एकाधिकारी फर्म भी अल्पकाल में हानि का सामना कर सकती है । एकाधिकारी अल्पकालीन हानि की स्थिति में उस बिन्दु तक उत्पादन करना उचित समझेगा जिस बिन्दु तक उसे औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) के बराबर या उससे अधिक वस्तु की कीमत प्राप्त नहीं होती ।

सामान्यतः एकाधिकारी द्वारा उत्पादित वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न (Close Substitute) उपलब्ध नहीं होता जिसके कारण एकाधिकारी अल्पकाल में अपनी हानि से बचने के उद्देश्य से वस्तु की कीमत उस वस्तु की औसत लागत (AC) के बराबर करने का प्रयास कर सकता है किन्तु यह एक प्रयास मात्र है ।

हम अल्पकाल में एकाधिकारी हानि की सम्भावना से इन्कार नहीं कर सकते । एकाधिकारी के लिए अल्पकाल में हानि की स्थिति कोई असम्भव अवस्था नहीं है ।

ADVERTISEMENTS:

संक्षेप में, एकाधिकार में अल्पकाल की सभी सम्भावित दशाओं को निम्नांकित चित्रों से समझा जा सकता है:

(i) लाभ की दशा (Profit Situation):

चित्र 3 में एकाधिकारी के अल्पकालीन लाभ की दशा को दिखाया गया है । चित्र में एकाधिकारी वस्तु का माँग वक्र AR तथा उससे सम्बन्धित सीमान्त आगम वक्र MR वक्र प्रदर्शित किये गये हैं । एकाधिकारी का सन्तुलन बिन्दु E पर दिखाया गया है जहाँ एकाधिकारी सन्तुलन की केनों शर्तें पूरी हो रही हैं । इस बिन्दु पर MR = MC । इस सन्तुलन की दशा में वस्तु की कीमत RX अथवा OP होगी ।

इस कीमत पर एकाधिकारी OX वस्तु का उत्पादन करेगा । चित्र में प्रति इकाई लागत SX अथवा OQ है अर्थात् एकाधिकारी को प्रति वस्तु RS दूरी के बराबर लाभ प्राप्त हो रहा है । चित्र से स्पष्ट है कि सम्पूर्ण उत्पादन OX पर एकाधिकारी को PRSQ के बराबर कुल लाभ प्राप्त होगा ।

संक्षेप में,

ADVERTISEMENTS:

कीमत (Price) = OP

उत्पादन (Output) = OX

कुल लाभ (Total Profit) = प्रति इकाई लाभ × उत्पादन

= PQ.OX

= PQRS क्षेत्रफल

(ii) सामान्य लाभ की दशा (Situation of Normal Profit):

ADVERTISEMENTS:

चित्र 4 में एकाधिकारी के मामान्य लाभ को प्रदर्शित किया गया है । सामान्य लाभ को शून्य लाभ (Zero Profit) भी कहा जाता है ।

सामान्य लाभ से अभिप्राय है कि एकाधिकारी वस्तु की औसत उत्पादन लागत के बराबर वस्तु की कीमत (AR) तय करता है । चित्र में एकाधिकारी का सन्तुलन बिन्दु E है जहाँ RX वस्तु की औसत लागत और वस्तु की कीमत दोनों है । इस स्थिति में एकाधिकारी को कोई अतिरेक प्राप्त नहीं हो रहा है ।

क्योंकि बिन्दु R पर, AR = AC

संक्षेप में,

कीमत (Price) = OP

उत्पादन (Output) = OX

एकाधिकारी को शून्य लाभ मिल रहा है ।

(iii) हानि की दशा (Situation of Loss):

चित्र 5 में एकाधिकारी की अल्पकालीन हानि की स्थिति को प्रदर्शित किया गया है । एकाधिकारी वस्तु की माँग कुछ स्थितियों में इतनी कमजोर भी हो सकती है कि एकाधिकारी को वस्तु की कीमत उस वस्तु की औसत लागत से भी कम करनी पड़े । यह हानि की स्थिति होगी ।

एकाधिकारी अल्पकाल में औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) से अधिक कीमत प्राप्त होने पर इस आशा में कार्य करता जाता है कि दीर्घकाल में यह हानि लाभ में परिवर्तित हो जायेगी ।

चित्र में RX वस्तु की प्रति इकाई कीमत है जबकि उस प्रति इकाई की औसत लागत SX है अर्थात् प्रति इकाई उत्पादक को SR हानि हो रही है । वस्तु का उत्पादन OX है जिसके कारण उत्पादक को PRSQ के बराबर हानि हो रही है ।

संक्षेप में,

कीमत (Price) = OP

उत्पादन (Output) = OX

कुल हानि (Total Loss) = प्रति इकाई हानि × कुल उत्पादन

= QP.OX

= PQSR क्षेत्रफल