Read this article in Hindi to learn about the degree of monopoly power and its measurement.

एकाधिकारी वस्तु का मूल्य स्वयं निर्धारित करता है । एकाधिकारी अपनी सौदेबाजी की शक्ति के कारण अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से ऊँची कीमत निर्धारित करके शोषण कर सकता है । प्रो. लर्नर, प्रो. ट्रिफिन, श्रीमती जॉन रॉबिन्सन ने एकाधिकारी शक्ति की माप की विधियों का उल्लेख किया है ।

प्रो. लर्नर की माप (Prof. Lerner’s Measurement):

वस्तुतः वस्तु कीमत तथा सीमान्त लागत का अन्तर ही एकाधिकारी शक्ति की कोटि का माप है । एक एकाधिकारी की शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि वह वस्तु की सीमान्त लागत से कितने अधिक कीमत पर वस्तु को बेचने में सफल होता है । सीमान्त लागत से ऊपर वस्तु की कीमत जितनी अधिक होगी, एकाधिकारी शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी ।

यदि,

वस्तु कीमत = सीमान्त लागत

AR = MC

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तब ऐसी दशा में एकाधिकारी शक्ति शून्य (Zero Monopoly Power) होगी । पूर्ण प्रतियोगिता में AR = MC क्योंकि AR = MR तथा सन्तुलन बिन्दु पर MR = MC

अतः AR = MC

इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का कीमत पर नियन्त्रण न होने के कारण एकाधिकारी शक्ति का कोई अंश नहीं पाया जाता किन्तु एकाधिकारी का कीमत पर नियन्त्रण होने के कारण कीमत (AR) सदैव सीमान्त लागत (MC) से अधिक होगी क्योंकि एकाधिकार में,

AR > MR

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तथा सन्तुलन बिन्दु पर, MR = MC

इस प्रकार, AR > MC

दूसरे शब्दों में, वस्तु कीमत तथा सीमान्त लागत में अन्तर होने के कारण एकाधिकारी शक्ति सदैव उपस्थित रहती है ।

श्रीमती जॉन रॉबिन्सन की माप (Mrs. Joan Robinsons Measurement):

श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार,

अर्थात् एकाधिकारी शक्ति तथा माँग की लोच में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है । इसके अनुसार, माँग की लोच जितनी अधिक होगी, एकाधिकारी शक्ति उतनी ही कम होगी तथा माँग की लोच जितनी कम होगी, एकाधिकारी शक्ति उतनी ही अधिक होगी ।

वस्तुतः प्रो. लर्नर तथा श्रीमती रॉबिन्सन की विचारधाराओं में कोई भेद नहीं ।

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प्रो. लर्नर के अनुसार,

श्रीमती रॉबिन्सन द्वारा दिये गये विचार के अनुसार हम जानते हैं कि एकाधिकार में,

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सन्तुलन की दशा में, MR = MC

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यही श्रीमती रॉबिन्सन द्वारा प्रतिपादित एकाधिकारी शक्ति की माप है ।

एकाधिकारी शक्ति की उपर्युक्त दोनों मापों की कुछ सीमाएँ (Limitations) हैं:

(1) एकाधिकारी एक साथ वस्तु कीमत तथा उत्पादन दोनों तय नहीं कर सकता । एकाधिकारी शक्ति वस्तु कीमत तथा लागत का अन्तर है । यदि एकाधिकारी ऊँची कीमत रखकर अपनी एकाधिकारी शक्ति को बढ़ाता है तो उसका उत्पादन घट जाएगा तथा इसके फलस्वरूप उसके लाभ में कमी होगी । इस विरोधाभास की लर्नर की माप द्वारा व्याख्या नहीं की जा सकती ।

(2) प्रो. लर्नर की माप एकाधिकृत प्रतियोगिता (Monopolistic Competition) तथा अल्पाधिकार (Oligopoly) की विक्रय लागतों (Selling Costs) को मापने में असमर्थ है । वस्तु कीमत मूल्यविहीन प्रतियोगिता (Non-price Competition) के कारण भी ऊँची हो सकती है ।

विज्ञापन व्यय आदि वस्तु के मूल्य को बढ़ा सकते हैं । दो फर्मों की एकाधिकारी शक्ति के एक समान होते हुए भी दोनों के द्वारा विक्रय मात्रा में अन्तर हो सकता है । लर्नर की माप इस पक्ष पर कोई विचार प्रकट नहीं करती ।

(3) वस्तु की कीमत परिवर्तन से उत्पन्न आय प्रभाव (Income Effect) तथा प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution Effect) में से एकाधिकार में कोई निकट स्थानापन्न उपलब्ध न होने के कारण प्रतिस्थापन प्रभाव शून्य हो जाता है । केवल आय प्रभाव शेष रहता है ।

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इस प्रकार एकाधिकार में माँग की कीमत लोच केवल आय प्रभाव को मापती है जो धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकती है । लर्नर की माप एकाधिकारी शक्ति की कोटि के साथ लोच का कोई निश्चित गुण नहीं जोड़ता ।

प्रो. ट्रिफिन की माप (Prof. Triffins Measurement):

प्रो. ट्रिफिन ने एकाधिकारी शक्ति की कोटि को माँग की आड़ी लोच के अर्थ में स्पष्ट किया है ।

माँग की आड़ी लोच जितनी अधिक होगी, एकाधिकारी शक्ति उतनी ही कम होगी तथा इसके विपरीत माँग की आड़ी लोच जितनी कम होगी, एकाधिकारी शक्ति उतनी ही अधिक होगी । शुद्ध एकाधिकार में माँग की आड़ी लोच शून्य होती है क्योंकि एकाधिकारी वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न उपलब्ध नहीं होता ।

ऐसी दशा में प्रो. ट्रिफिन के अनुसार एकाधिकारी शक्ति अधिकतम होती है । पूर्ण प्रतियोगिता में माँग की आड़ी लोच अनन्त होती है जिसके कारण पूर्ण प्रतियोगिता में एकाधिकारी शक्ति न्यूनतम अथवा शून्य होती है ।