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ब्याज के आधुनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. हिक्स (Hicks) तथा प्रो. हेन्सन (Hansen) ने किया । इसी कारण ब्याज के इस सिद्धान्त को हिक्स-हेन्सन समन्वय सिद्धान्त (Hicks-Hansen Synthesis) भी कहा जाता है । प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार ब्याज दर वास्तविक तत्वों (Real Factors) जैसे -विनियोग तथा बचत पर निर्भर करती है ।

कीन्स का सिद्धान्त ब्याज की दर को पूर्णतः मौद्रिक घटना के रूप में परिभाषित करता है । कीन्स के अनुसार ब्याज की दर मुद्रा की माँग (अथवा तरलता पसन्दगी) तथा मुद्रा की पूर्ति द्वारा प्रभावित होती है ।

प्रो. हिक्स ने दोनों ही विचारधाराओं को अपूर्ण बताते हुए स्पष्ट किया कि प्रतिष्ठित विचारधारा वस्तु बाजार के सन्तुलन को बताती है जिसमें ब्याज दर के निर्धारण के सम्बन्ध में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है ।

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यह सिद्धान्त केवल यह बतलाता है कि विनियोग-बचत समानता की दशा में विभिन्न ब्याज की दरों पर आय के स्तर क्या होंगे ? कीन्स का सिद्धान्त मुद्रा बाजार के सन्तुलन को बताता है जिसमें ब्याज की दर पुनः अनिर्धारणीय है क्योंकि यह सिद्धान्त केवल मुद्रा की माँग एवं मुद्रा की पूर्ति में समानता की दशा को स्पष्ट करता है ।

प्रो. हिक्स एवं प्रो. हेन्सन ने उपर्युक्त दोनों विचारधाराओं का उचित समन्वय करके ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त प्रस्तुत किया । आधुनिक सिद्धान्त में आय परिवर्तन का मौद्रिक एवं वास्तविक तत्वों पर प्रभाव देखकर ब्याज दर का निर्धारण किया गया है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि सिद्धान्त में मौद्रिक एवं वास्तविक तत्वों का एकीकरण करके ब्याज दर निर्धारित की गयी है ।

प्रतिष्ठित विचारधारा एवं कीन्स की तरलता पसन्दगी विचारधारा का समन्वय (Synthesis) करके हमें निम्नलिखित चार तत्व प्राप्त होते हैं:

(i) विनियोग माँग वक्र (Investment Demand Function)

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(ii) बचत वक्र (Saving Function)

(iii) तरलता पसन्दगी वक्र (Liquidity Preference Curve)

(iv) मुद्रा की पूर्ति (Supply of Money) |

उपर्युक्त तत्वों के आधार पर हमें दो प्रकार के वक्र प्राप्त होते हैं:

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1. विनियोग बचत वक्र (IS Curve):

विनियोग बचत वक्र, प्रतिष्ठित सिद्धान्त से प्राप्त किया जाता है जो ब्याज एवं आय के ऐसे संयोगों को बताता है जिन पर विनियोग एवं बचत बराबर होते हैं । (IS curve depicts those different combinations of interest and income level which keep I = S) |

इस प्रकार वस्तु बाजार में वास्तविक तत्वों के सन्तुलन को बताने वाला वक्र IS वक्र कहलाता है ।

वस्तु बाजार में,

I = f (r) अर्थात् विनियोग ब्याज की दर का फलन है ।

S = f (Y) अर्थात् बचत आय का फलन है ।

तथा I = S अर्थात् वस्तु बाजार में सन्तुलन के लिए आवश्यक है कि विनियोग तथा बचत बराबर हों ।

वस्तु बाजार के इन सभी कारणों की सहायता से IS वक्र की व्युत्पत्ति की जा सकती है । चित्र 8. में IS वक्र की व्युत्पत्ति समझायी गयी हैं । चित्र के A भाग में विभिन्न आय स्तरों Y1, Y2, Y3, Y4 तथा Y5 पर बचत वक्र (Saving Curve) क्रमशः S1Y1, S2Y2, S3Y3, S4Y4 तथा S5Y5 हैं ।

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इन विभिन्न आय स्तरों पर बचत वक्र विनियोग वक्र के साथ समानता (I = S) स्थापित करते हुए क्रमशः ब्याज की दर r1, r2, r3, r4 तथा r5 निर्धारित करते हैं । इस प्रकार चित्र का A भाग हमें यह बतलाता है कि विभिन्न आय स्तरों पर बचत तथा विनियोग की समानता की दशा में ब्याज की विभिन्न दरें क्या हैं ? चित्र के भाग B में इसी सम्बन्ध का निरूपण किया गया है ।

IS वक्र ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ (Locus) है जो आय एवं ब्याज की दर के उन विभिन्न संयोगों को बताता है जिन पर बचत एवं विनियोग समान होते हैं ।

2. LM वक्र (LM Curve):

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कीन्स के विश्लेषण के अनुसार अर्थव्यवस्था में ब्याज दर पूर्णतः एक मौद्रिक घटना है । ब्याज दर अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति तथा मुद्रा की माँग की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है । आय के विभिन्न स्तरों पर तरलता पसन्दगी (Liquidity Preference) के भी कई स्तर होंगे । दूसरे शब्दों में, कीन्स की तरलता पसन्दगी विचारधारा से LM वक्र की उत्पत्ति की जा सकती है ।

LM वक्र हमें यह बतलाता है कि तरलता पसन्दगी वक्र दिये हुए होने की दशा में विभिन्न आय स्तरों पर ब्याज की क्या-क्या दरें होंगी ।

चित्र 9. में LM वक्र की व्युत्पत्ति समझायी गयी है । चित्र के भाग A में स्थिर मुद्रा की पूर्ति को ML वक्र द्वारा दिखाया गया है । विभिन्न आय स्तरों Y1, Y2, Y3, Y4 तथा Y5 पर तरलता पसन्दगी वक्र क्रमशः L1Y1, L2Y2, L3Y3, L4Y4 तथा L5Y5 प्रदर्शित किये गये हैं जो विभिन्न आय स्तरों पर मुद्रा की माँग तथा मुद्रा की पूर्ति में समानता (L = M) स्थापित करते हुए विभिन्न ब्याज की दरें क्रमशः r1, r2, r3, r4 तथा r5 निर्धारित करते हैं ।

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इस प्रकार चित्र का A भाग स्पष्ट रूप से हमें मुद्रा की माँग तथा मुद्रा की पूर्ति की समानता की दशा में आय-स्तर तथा ब्याज की दर के सम्बन्ध को बताता है । चित्र के B भाग में इसी सम्बन्ध को LM वक्र की सहायता से व्यक्त किया गया है ।

LM वक्र आय तथा ब्याज की दर के ऐसे संयोग बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिन पर मुद्रा की पूर्ति (M) तथा मुद्रा की माँग (L) परस्पर बराबर हों । LM वक्र की सहायता से हम दिये गये आय-स्तरों पर ब्याज की दरों का अनुमान लगा सकते हैं किन्तु यदि हमें पहले से आय-स्तर का पता हो तो हम ब्याज की दर का अनुमान नहीं कर सकते ।

ब्याज दर का निर्धारण (Determination of Interest Rate):

IS वक्र तथा LM वक्र दोनों की सहायता से हम ब्याज की दर तथा आय-स्तर का निर्धारण कर सकते हैं । निर्धारण की इस प्रक्रिया को चित्र 10 में समझाया गया है । चित्र में आरम्भिक IS1 वक्र तथा LM1 वक्र एक-दूसरे को बिन्दु E1 पर काटते हैं तथा Or1 ब्याज दर तथा OY1 आय-स्तर निर्धारित होते हैं ।

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इस सन्तुलन बिन्दु E1 पर आय-स्तर तथा ब्याज की दर में सम्बन्ध इस प्रकार निर्धारित होता है कि:

i. विनियोग एवं बचत सन्तुलन में हों (अर्थात् वास्तविक बचत एवं विनियोग इच्छित बचत (Desired) के बराबर हों) तथा

ii. मुद्रा की माँग, मुद्रा की पूर्ति के बराबर होनी चाहिए (अर्थात् माँगी गयी मुद्रा की मात्रा वास्तविक मुद्रा की पूर्ति के बराबर होनी चाहिए ।)

चित्र में IS2 परिवर्तित विनियोग-बचत वक्र को बताता है । विनियोग-बचत वक्र का यह परिवर्तन विनियोग फलन में वृद्धि अथवा बचत फलन में कमी के कारण उत्पन्न होता है । परिवर्तित LM2 वक्र मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि और/अथवा तरलता पसन्दगी में कमी के कारण उपस्थित होता है । परिवर्तित IS2 तथा LM2 वक्रों के साथ Or2 ब्याज दर तथा OY2 आय-स्तर निर्धारित होते हैं ।

इस प्रकार ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त निर्धारणीय है जो निम्नलिखित फलनों पर आधारित है:

i. विनियोग माँग फलन

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I = I (r)

अर्थात् विनियोग ब्याज की दर का फलन होता है ।

ii. बचत फलन

S = S (Y, r)

अर्थात् बचत, आय-स्तर तथा ब्याज की दर दोनों का फलन होती है ।

iii. तरलता पसन्दगी फलन

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L = L (Y, r)

अर्थात् मुद्रा की माँग, आय-स्तर तथा ब्याज की दर पर निर्भर करती है ।

iv. मुद्रा की मात्रा जो सरकार द्वारा नियन्त्रित की जाती है, स्थिर होती है ।

उपर्युक्त फलनों के आधार पर सन्तुलन शर्तों को निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है:

a. I = S अर्थात् विनियोग = बचत

b. L = M अर्थात् मुद्रा की माँग = मुद्रा की पूर्ति

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आलोचना (Criticism):

ब्याज दर का आधुनिक सिद्धान्त एक उचित सिद्धान्त माना जाता है ।

परन्तु फ्रेडमैन (Friedman) तथा पैटिन्किन (Patinkin) ने इस सिद्धान्त के निम्नलिखित दोष सामने रखे हैं:

1. समय तत्व की उपेक्षा (Ignores Time Element):

कीन्स के सिद्धान्त की भाँति यह सिद्धान्त भी स्पष्ट नहीं करता कि अल्पकाल तथा दीर्घकाल में ब्याज दर में अन्तर क्यों होता है ?

2. कीमत परिवर्तन की उपेक्षा (Ignores Price Changes):

इस सिद्धान्त में IS तथा LM दोनों ही फलन (Functions) कीमत स्थिर मानकर प्राप्त किये गये हैं जबकि वास्तव में ऐसी स्थिति नहीं पायी जाती ।

3. विनियोग एवं ब्याज दर (Investment and Interest Rate):

इस सिद्धान्त में यह मान लिया गया है कि ब्याज दर के साथ विनियोग लोचदार होता है जबकि अध्ययन यह बताता है कि विनियोग सामान्य रूप से ब्याज दर के सापेक्ष बेलोच होता है ।