Read this article in Hindi to learn about how optimum cost combination of inputs will be obtained with the help of a iso-product curve.

साधनों का अनुकूलतम संयोग अथवा साधनों का न्यूनतम लागत संयोग से अभिप्राय है कि दिये गये लागत व्यय (Cost Outlay) से किस प्रकार एक उत्पादक उत्पादन की अधिकतम मात्रा प्राप्त करता है ।

जिस प्रकार उपभोक्ता अपनी सीमित आय की सहायता से दी गयी वस्तु कीमतों के अन्तर्गत अपनी सन्तुष्टि को अधिकतम करने का प्रयास करता है, ठीक उसी प्रकार एक उत्पादक अपने सीमित लागत व्यय की सहायता से उत्पत्ति साधनों की दी गई कीमतों के साथ अपने उत्पादन को अधिकतम करने का प्रयास करता है ।

एक उत्पादक साधनों का प्रयोग करते हुए साम्य की स्थिति में तब होगा जब वह उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम प्रयोग (Optimum Utilization) करते हुए अथवा दूसरे शब्दों में, न्यूनतम लागत संयोग (Least Cost Combination) का प्रयोग करते हुए अपने लाभ को अधिकतम करने की स्थिति में हो जाये ।

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उत्पादक के अधिकतम लाभ के बिन्दु का निर्धारण दो तत्वों पर निर्भर करता है:

(1) साधनों की भौतिक उत्पादकता (Physical Productivity) जिसको समोत्पाद वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, तथा

(2) साधनों की कीमतें जिसका प्रदर्शन सम-लागत रेखा अथवा साधन कीमत रेखा द्वारा किया जाता है ।

उत्पादक अपने लाभ को निम्नलिखित दो उपायों से अधिकतम कर सकता है:

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(A) लागत को न्यूनतम करना जबकि उत्पादन की मात्रा दी हुई हो (Minimizing Cost when Output is given),

(B) उत्पादन अधिकतम करना जबकि उत्पादन व्यय दिया हुआ हो (Maximizing Cost when Outlay is given) |

A. लागत को न्यूनतम करना जबकि उत्पादन की मात्रा दी हुई हो (Minimizing Cost when Output is given):

उत्पादक अपने लाभ को उस स्थिति में अधिकतम कर सकता है जब वह एक निश्चित उत्पादन स्तर प्राप्त करने के लिए साधनों के एक ऐसे संयोग का चुनाव करे जिससे उसकी उत्पादन लागत सबसे कम हो सके । ऐसा संयोग ही न्यूनतम लागत संयोग कहा जाता है । चित्र 1 में न्यूनतम लागत संयोग प्राप्त करने की विधि का वर्णन किया गया है ।

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IP एक समोत्पाद वक्र है जो 200 इकाई के बराबर उत्पादन स्तर को बताता है । यदि उत्पादक 200 इकाई उत्पादन प्राप्त करते हुए अपने लाभ को अधिकतम करना चाहता है तब उसे एक ऐसे साधन संयोग का चुनाव करना पड़ेगा जो उस उत्पादन विशेष को न्यूनतम लागत (Minimum Cost) पर उत्पादित कर सके ।

समोत्पाद वक्र IP पर साधन संयोग बिन्दु A, B, E, D तथा C प्रदर्शित किये गये हैं जो एक समान उत्पादन 200 इकाई उत्पादित करते हैं । संयोग A तथा C साधन कीमत रेखा R3S3 पर स्थित हैं जबकि संयोग B तथा D साधन कीमत रेखा R2S2 पर स्थित हैं ।

साधन कीमत रेखा R3S3 साधन कीमत रेखा R2S2 की तुलना में ऊँची उत्पादन लागत को स्पष्ट करती है । उत्पादक न्यूनतम लागत संयोग प्राप्त करने के लिए ऊँची लागत वाली साधन कीमत रेखा R3S3 को छोड़कर अपेक्षाकृत कम लागत वाली साधन कीमत रेखा R2S2 पर चला आयेगा क्योंकि दोनों लागत स्तर पर एक समान उत्पादन मात्रा 200 इकाई का उत्पादन कर रहे हैं ।

इसी प्रकार उपभोक्ता साधन कीमत रेखा R2S2 को छोड़कर नीची लागत वाली साधन कीमत रेखा RS पर स्थानान्तरित होगा क्योंकि संयोग बिन्दु E भी 200 इकाई उत्पादन दे रहा है ।

इस प्रकार स्पष्ट है कि उत्पादन न्यूनतम लागत संयोग प्राप्त करने के लिए ऊँची लागत वाली साधन कीमत रेखा से नीची लागत वाली साधन कीमत रेखा पर तब तक स्थानान्तरित होता रहेगा जब तक समोत्पाद वक्र साधन कीमत रेखा को एक बिन्दु पर स्पर्श न कर ले ।

चित्र 2 में यह बिन्दु E द्वारा प्रदर्शित किया गया है । उत्पादक बिन्दु E पर न्यूनतम लागत पर दिया गया उत्पादन स्तर प्राप्त कर रहा है । उत्पादन स्तर 200 इकाई साधन कीमत रेखा R1S1 द्वारा नहीं प्राप्त किया जा सकता ।

संक्षेप में, कहा जा सकता है कि साधन कीमत रेखा तथा समोत्पाद वक्र का स्पर्श बिन्दु ही न्यूनतम लागत संयोग अथवा साधनों के अनुकूलतम संयोग को बताता है जिस पर उत्पादक को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है ।

(B) उत्पादन अधिकतम करना जबकि उत्पादन व्यय दिया हुआ हो (Maximizing Cost when Outlay is given):

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साधन की कीमत रेखा दी होने पर उत्पादक अपने लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से उत्पादन के उच्चतम स्तर पर पहुँचने का प्रयास करता है । ऐसी स्थिति में उत्पादक अपने समोत्पाद मानचित्र के निचले समोत्पाद वक्र से ऊपर के समोत्पाद वक्र पर तब तक बढ़ता जायेगा जब तक साधन कीमत रेखा उसकी अनुमति दे ।

यह उच्चतम उत्पादन बिन्दु दी गई साधन कीमत रेखा के साथ तब प्राप्त होगा जब दी गई साधन कीमत रेखा समोत्पाद वक्र को एक बिन्दु पर स्पर्श करे । चित्र 2 में इस स्थिति का वर्णन किया गया है । चित्र में उच्चतम उत्पादन बिन्दु E प्रदर्शित किया गया है ।

बिन्दु E समोत्पाद वक्र IP2 तथा साधन कीमत रेखा RS का स्पर्श बिन्दु है । कीमत रेखा RS पर दो संयोग बिन्दु A तथा B भी उपलब्ध हैं किन्तु इन संयोग बिन्दु की सहायता से समोत्पाद वक्र IP1 ही प्राप्त कर पाते हैं जो IP2 की तुलना में नीचे उत्पादन स्तर को बताता है ।

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अतः उत्पादक दी गई साधन कीमत रेखा RS के साथ IP1 समोत्पाद वक्र को छोड़कर ऊँचे समोत्पाद वक्र IP2 पर पहुँच जाता है । समोत्पाद वक्र IP3 और ऊँचे उत्पादन स्तर को बताता है किन्तु दी गई साधन कीमत रेखा RS की सहायता से इस उत्पादन स्तर को प्राप्त नहीं किया जा सकता ।

संक्षेप में, सन्तुलन बिन्दु E पर समोत्पाद वक्र को दी गयी साधन कीमत रेखा को स्पर्श करना चाहिए ।

दूसरे शब्दों में, सन्तुलन बिन्दु E पर, मात्रात्मक रूप में,

समोत्पाद वक्र का ढाल = साधन कीमत रेखा का ढाल,  

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अर्थात् न्यूनतम लागत संयोग उस बिन्दु पर प्राप्त होगा जहाँ साधन X की Y के लिए तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर साधन X तथा Y की कीमतों के अनुपात के बराबर होगी ।

अतः न्यूनतम लागत संयोग के लिए,

अर्थात्,

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दूसरे शब्दों में, न्यूनतम लागत संयोग अथवा अनुकूलतम लागत संयोग उस बिन्दु पर प्राप्त होगा जहाँ साधन X की सीमान्त उत्पादकता एवं उसकी कीमत का अनुपात दूसरे साधन Y की सीमान्त उत्पादकता एवं उसकी कीमत के अनुपात के बराबर हो जाये ।

इस प्रकार उत्पादक के सन्तुलन की दशा को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त किया जा सकता है:

(1) सन्तुलन के बिन्दु पर न्यूनतम लागत संयोग प्राप्त होना चाहिए अर्थात् सन्तुलन बिन्दु पर समोत्पाद वक्र द्वारा साधन कीमत रेखा को स्पर्श किया जाना चाहिए ।

(2) सन्तुलन के बिन्दु पर तकनीकी सीमान्त प्रतिस्थापन दर साधनों की कीमत अनुपात के बराबर होनी चाहिए ।

(3) सन्तुलन के बिन्दु पर एक साधन की सीमान्त उत्पादकता एवं उसकी कीमत का अनुपात दूसरे साधन की सीमान्त उत्पादकता एवं उसकी कीमत के अनुपात के बराबर होता है ।

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सन्तुलन की दशा के उपर्युक्त स्पष्टीकरण वस्तुतः सन्तुलन की एक दशा के विभिन्न रूपों को बताते हैं ।