Read this article in Hindi to learn about the meaning and assumptions of Iso-Product curve.


Contents:

  1. समोत्पाद वक्र की परिभाषा (Definition of Iso-Product Curve)
  2. समोत्पाद मानचित्र (Iso-Product Map)
  3. समोत्पाद वक्रों की मान्यताएँ (Assumptions of Iso-Product Curves)
  4. साधन की प्रतिस्थापन लोच (Factor Elasticity of Substitutions)
  5. ऋजु रेखाएँ अथवा उत्पादन के आर्थिक क्षेत्र की सीमाएँ (Ridge Lines or Boundaries for the Economic Region of Production)

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1. समोत्पाद वक्र की परिभाषा (Definition of Iso-Product Curve):

सम-उत्पाद वक्र उपभोग के उदासीनता वक्र की भाँति होते हैं । जिस प्रकार उदासीनता वक्र दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों से उपभोक्ता को प्राप्त होने वाली समान सन्तुष्टि को स्पष्ट करता है, ठीक उसी प्रकार सम-उत्पाद वक्र दो उत्पत्ति के साधनों के विभिन्न संयोगों से उत्पादक को प्राप्त होने वाले एक समान आदन स्तर को बताता है । इसी कारण सम-उत्पाद वक्र को उत्पादन उदासीनता वक्र (Production Indifference Curve) भी कहा जाता है ।

कीरस्टीड (Keirstead) के शब्दों में, ”सम-उत्पाद रेखा दो साधनों के उन सब सम्भावित संयोगों को बताती है जो कि एक समान कुल उत्पादन प्राप्त करते हैं ।”

दूसरे शब्दों में, सम-उत्पाद वक्र एक समान उत्पादन करने वाले दो उत्पत्ति के साधनों के अनेक संयोग बिन्दुओं का बिन्दुपथ (locus) है । विभिन्न सम-उत्पाद रेखाएँ उत्पादन के विभिन्न उत्पादन के स्तर को बताती हैं ।

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नीचे दी गयी काल्पनिक तालिका के आधार पर सम-उत्पाद रेखाओं को स्पष्ट कर सकते हैं:

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि संयोग A(= 2X + 15Y), संयोग B(= 4X + 11Y), संयोग C(= 6X + 8Y), संयोग D(= 8X + 6Y) तथा संयोग E(= 10X + 5Y) सभी संयोग उत्पादक को एक समान उत्पादन (200 इकाई के बराबर) देते हैं ।

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चित्र 1 में सम-उत्पाद तालिका की सहायता से सम-उत्पाद वक्र IP खींचा गया है ।


2. समोत्पाद मानचित्र (Iso-Product Map):

चित्र 2 में उत्पादक का समोत्पाद मानचित्र (Iso-Product Map) दिखाया गया है जो विभिन्न उत्पादन स्तरों को प्रदर्शित करता है । ऊँचा समोत्पाद वक्र ऊँचे उत्पादन स्तर को बताता है ।

इस प्रकार, जब एक ही उत्पादक फर्म के लिए उत्पादन की विभिन्न समान मात्राओं को बताने वाली अनेक समोत्पाद रेखाओं को एक ही चित्र में प्रदर्शित किया जाता है तब इस अभीष्ट चित्र को समोत्पाद मानचित्र (Iso-product Map) कहते हैं । समोत्पाद मानचित्र का ऊँचा समोत्पाद वक्र फर्म के ऊँचे उत्पादन स्तर को तथा निचला समोत्पाद वक्र उत्पादन के निचले स्तर को बताता है ।


3. समोत्पाद वक्रों की मान्यताएँ (Assumptions of Iso-Product Curves):

समोत्पाद वक्र एवं समोत्पाद मानचित्र निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित हैं:

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(1) समोत्पाद वक्र की व्याख्या केवल दो उत्पत्ति के साधनों के सन्दर्भ में की जाती है अर्थात् यह मान लिया जाता है कि किसी वस्तु के उत्पादन में केवल उत्पत्ति के दो साधनों का प्रयोग किया जा रहा है ।

(2) उत्पादन की तकनीकी दशाएँ (Technical Conditions) स्थिर रहती हैं ।

(3) उत्पत्ति के साधनों को छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटा जा सकता है ।

(4) दी हुई एवं स्थिर तकनीकी दशाओं में प्रयोग किये जाने वाले उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग उनकी पूरी क्षमता एवं कुशलता से किया जाता है ।

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4. साधन की प्रतिस्थापन लोच (Factor Elasticity of Substitutions):

उत्पत्ति के दो साधनों के मध्य प्रतिस्थापन योग्यता की सुगमता की माप को साधन की प्रतिस्थापना लोच द्वारा मापा जाता है । दूसरे शब्दों में, साधन की प्रतिस्थापन लोच साधनों के मध्य स्थानापन्न योग्यता की उस कोटि को मापती है जिसके अन्तर्गत एक उत्पत्ति के साधन को दूसरे उत्पत्ति के साधन द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है ।

प्रो. हिक्स के शब्दों में, साधन की प्रतिस्थापन लोच ”उस स्थिति की माप है जिसमें अन्य उत्पत्ति साधनों के स्थान पर एक परिवर्तनशील साधन को प्रतिस्थापित किया जा सकता है ।”

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साधन की प्रतिस्थापन लोच को दो उत्पत्ति के साधनों – पूँजी (K) तथा श्रम (L) की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है ।

साधन की प्रतिस्थापन लोच का आधार तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर MRTSLK है ।

साधन की प्रतिस्थापन लोच (es) को इसी तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर की सहायता से परिभाषित किया जा सकता है ।

”तकनीकी सीमान्त प्रतिस्थापन दर (MRTS) में परिवर्तन की प्रतिक्रिया के रूप में साधनों के बीच अनुपात में जो सापेक्षिक परिवर्तन होता है, उसे साधन की प्रतिस्थापन लोच कहते हैं ।”

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यदि किसी वस्तु विशेष के उत्पादन में दो उत्पत्ति साधन – श्रम एवं पूँजी निश्चित अनुपात में प्रयोग किये जाते हैं तब साधन की प्रतिस्थापन लोच (es) शून्य होगी ।

यदि उत्पत्ति के साथ पूर्ण स्थानापन्न हो (अर्थात् एक साधन के स्थान पर दूसरे साधन को सहजता के साथ प्रयोग किया जा सकता हो) तब साधन की प्रतिस्थापन लोच अनन्त होगी । साधन की प्रतिस्थापन लोच की माप समोत्पाद वक्र की वक्रता द्वारा की जा सकती है । यदि साधन पूर्णतया पूरक है तब समोत्पाद वक्र L-आकार (L-Shaped) का होगा तथा ऐसी दशा में साधन की प्रतिस्थापन लोच (es) शून्य होगी ।

इसके विपरीत साधनों के पूर्ण स्थानापन्न होने की दशा में समोत्पाद वक्र की वक्रता समाप्त हो जायेगी और समोत्पाद वक्र एक सीधी रेखा (बायें से दायें नीचे गिरती) के रूप में आ जाएगा । ऐसी दशा में साधन की प्रतिस्थापन लोच (es) अनन्त (Infinite) होगी ।

किन्तु वास्तविकता में उत्पत्ति साधन न तो पूर्ण पूरक पाये जाते हैं और न ही पूर्ण स्थानापन्न । साधन की स्थानापन्न क्षमता समीत्पाद वक्र के चपटेपन (Flatness) द्वारा ज्ञात की जाती है । समीत्पाद वक्र जितना अधिक चपटा होगा उसमें प्रतिस्थापन लोच उतनी ही अधिक होगी । ऐसी स्थिति में उत्पत्ति के साधन अच्छे स्थानापन्न कहे जायेंगे ।


5. ऋजु रेखाएँ अथवा उत्पादन के आर्थिक क्षेत्र की सीमाएँ (Ridge Lines or Boundaries for the Economic Region of Production):

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समोत्पाद वक्र मानचित्र उत्पादक के लिए विभिन्न उत्पादन स्तरों को बताता है । समोत्पाद वक्र मानचित्र का प्रत्येक समोत्पाद वक्र बायें से दायें नीचे गिरता हुआ होता है । यदि उत्पादक दोनों उत्पत्ति साधनों अथवा किसी एक उत्पत्ति साधन में वृद्धि करता है तब निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उत्पादक अपने स्तर में वृद्धि करता है ।

किन्तु समोत्पाद वक्र पर विभिन्न संयोग समान उत्पादन देते हैं क्योंकि एक साधन की वृद्धि करने के लिए उत्पादक को दूसरे साधन की मात्रा में कमी करनी पड़ती है ताकि उत्पादन स्तर स्थिर रहे । इसी कारण साधन X की Y के लिए तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर (MRTSxy) ऋणात्मक होती है ।

उत्पादन साधनों में एक अथवा दोनों साधनों में लगातार वृद्धि, व्यवहार में (Reality), एक बिन्दु के बाद कुल उत्पादकता में (अथवा कुल उत्पादन मात्रा में) वृद्धि के स्थान पर कमी करती है । अतः एक विवेकशील उत्पादक अपना उत्पादन उसी बिन्दु तक करेगा जहाँ तक कुल उत्पादन में कमी न हो ।

दूसरे शब्दों में, समोत्पाद वक्र मूल बिन्दु के सापेक्ष जहाँ तक उत्तल (Convex to the Origin) रहे, वहाँ तक उत्पादन लाभप्रद है । समोमाद वक्रों का वह क्षेत्र जहाँ तक (समोत्पाद वक्र) मूल बिन्दु के सापेक्ष उत्तल रहते हैं, ऋजु रेखाओं का क्षेत्र (Region of Ridge Lines) कहलाता है ।

ऋजु रेखाओं के बीच के क्षेत्र को उत्पादन का आर्थिक क्षेत्र (Economic Region of Production) भी कहा जाता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि ऋजु रेखाएँ उत्पादन के आर्थिक क्षेत्र की सीमाएँ हैं । समोत्पाद वक्रों के केवल वे भाग जो ऋजु रेखाओं के बीच में हैं, उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं ।

चित्र 8 में ऋजु रेखाओं की व्युत्पत्ति समझायी गयी है । चित्र से IP1, IP2, IP3 तीन समोत्पाद रेखाएँ प्रदर्शित की गयी हैं । समोत्पाद वक्र IP3 के बिन्दु B3 पर साधन X की OM3 तथा साधन Y की ON3 मात्रा प्रयोग की जा रही है ।

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समोत्पाद वक्र IP3 के बिन्दु A3 से बिन्दु B3 तक आने में उत्पादक साधन X की अतिरिक्त इकाइयाँ प्राप्त करने के लिए साधन Y की इकाइयों का त्याग करता है । बिन्दु B3 के बाद समोत्पाद वक्र IP3 बायें से दायें ऊपर चढ़ने लगता है अर्थात् ON3 साधन Y की वह न्यूनतम मात्रा है जो उत्पादक को IP3 उत्पादन स्तर प्राप्त करने के लिए साधन X की इकाइयों के साथ प्रयोग करनी पड़ेगी ।

बिन्दु B3 के बाद यदि Y की ON3 स्थिर मात्रा पर उत्पादक साधन X की मात्रा OM4 तक बढ़ाता है तब वह बिन्दु G ही प्राप्त कर पायेगा, F नहीं क्योंकि साधन Y की मात्रा स्थिर है, अर्थात् साधन Y के स्थिर रहते हुए साधन X की मात्रा वृद्धि कुल उत्पादन स्तर को घटायेगी क्योंकि बिन्दु G उत्पादक को नीचे समोत्पाद वक्र पर उपलब्ध होगा ।

इसका अभिप्राय है कि बिन्दु A3 से B3 तक साधन X की सीमान्त उत्पादकता (MPx) धनात्मक है जबकि बिन्दु B3 के बाद साधन X की सीमान्त उत्पादकता ऋणात्मक (Negative) है ।

चित्र से स्पष्ट है कि बिन्दु B3 पर MPx = 0 > इस प्रकार धनात्मक सीमान्त उत्पादकता वाला क्षेत्र ऋजु रेखाओं के क्षेत्र का भाग होगा तथा धनात्मक सीमान्त उत्पादकता वाले दो सिरे के बिन्दु A3 तथा B3 क्रमशः ऋजु रेखाओं OR तथा OS पर स्थित होंगे । इसी व्याख्या से ऋजु रेखाओं पर A1 , A2 तथा B1 , B2 बिन्दु भी प्राप्त किये जा सकते हैं ।

यदि बिन्दु A1 , A2 , A3 बिन्दुओं को मिलाती रेखा खींची जाये तो हमें OR ऋजु रेखा प्राप्त होती है । इसी प्रकार बिन्दु B1 , B2 , B3 को मिलाती रेखा हमें ऋजु रेखा OS देती है ।

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संक्षेप में:

(1) ऋजु रेखा OR हमें साधन Y की उस न्यूनतम मात्राओं को बताती है जो उत्पादन की विभिन्न मात्राओं के लिए आवश्यक है जबकि ऋजु रेखा OS हमें साधन X की उस न्यूनतम मात्राओं को बताती है जो उत्पादन की विभिन्न मात्राओं के लिए आवश्यक हैं ।

(2) ऋजु रेखा OR साधन Y की शून्य सीमान्त उत्पादकता (Zero Marginal Productivity of Factor Y) वाले बिन्दुओं का बिन्दुपथ (Locus) है जबकि ऋजु रेखा OS साधन X की शून्य सीमान्त उत्पादकता वाले बिन्दुओं का बिन्दुपथ बताती है ।

(3) दोनों ऋजु रेखाएँ उत्पादन के आर्थिक क्षेत्र की सीमाएँ (Limits or Boundry Lines for Economic Region of Production) हैं ।