Read this article in Hindi to learn about the firm-industry relation under perfect competition.

पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता एक बड़ी संख्या में होते हैं जिसके कारण कोई व्यक्तिगत फर्म वस्तु की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकती ।

उद्योग में एकसमान वस्तुएँ उत्पादित करने वाली अनेक फर्में होती हैं जिसके कारण एक व्यक्तिगत फर्म का उद्योग के उत्पादन में इतना सूक्ष्म योगदान होता है कि उस फर्म विशेष की वस्तु की पूर्ति के परिवर्तन का उस उद्योग की कुल पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।

यही कारण है कि पूर्ण प्रतियोगिता में कोई फर्म उद्योग की कीमत को प्रभावित नहीं कर पाती । पूर्ण प्रतियोगिता में एक उद्योग के अन्तर्गत कार्य करने वाली प्रत्येक कर्म कीमत प्राप्तकर्ता (Price Taker) तथा मात्रा नियोजक (Quantity Adjuster) होती है ।

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चित्र 13 में वस्तु की कीमत वस्तु की माँग तथा वस्तु की पूर्ति द्वारा निर्धारित हो रही है । उद्योग में सन्तुलन बिन्दु E पर उपलब्ध होता है जिसके कारण वस्तु की OP कीमत तय होती है । इस कीमत OP को उद्योग के अन्तर्गत कार्य कर रही प्रत्येक फर्म दिया हुआ मान लेती है तथा वह इस कीमत पर अपनी उत्पादन मात्रा को तय करती है ।

फर्म इस निर्धारित कीमत में तो परिवर्तन नहीं कर सकती किन्तु इस कीमत पर वह वस्तु की कितनी ही मात्रा का उत्पादन एवं विक्रय कर सकती है । यही कारण है कि फर्म के लिए कीमत रेखा X-अक्ष के समानान्तर एक क्षैतिज रेखा (Horizontal Line Parellel to X-axis) होती है ।

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साथ-ही-साथ हम यह भी अध्ययन कर चुके हैं कि क्रेता तथा विक्रेता दोनों ही बाजार में प्रचलित कीमत से पूर्णतः अवगत हैं । एकसमान वस्तु होने के कारण तथा क्रेता को बाजार की पूर्ण जानकारी होने के कारण कोई विक्रेता प्रचलित कीमत से अधिक कीमत क्रेता से वसूल नहीं कर सकता ।

एकसमान वस्तु होने के कारण प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए क्रेता को एकसमान कीमत पूर्ण प्रतियोगिता में देनी पड़ेगी ।

यही कारण है कि पूर्ण प्रतियोगिता में,

औसत आगम = सीमान्त आगम

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AR = MR

इसका अभिप्राय है कि पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु विशेष की कीमत सदैव स्थिर होगी तथा एक व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र बाजार में प्रचलित कीमत पर पूर्णतया कीमत सापेक्ष (Perfectly Elastic Price) होगा (देखें चित्र 13) । पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु कीमत में तब तक कोई परिवर्तन नहीं होगा जब तक उद्योग/बाजार की माँग तथा पूर्ति दशाओं में परिवर्तन न हो जाय ।