Read this article in Hindi to learn about the effects of changes in demand and supply on equilibrium price in perfect competition.

माँग एवं पूर्ति के सन्तुलित हो जाने के बाद सन्तुलन कीमत निर्धारित होती है जिसे स्थायी माना जाता है किन्तु व्यावहारिक जीवन में वस्तु की माँग तथा पूर्ति दोनों ही दशाओं में परिवर्तन होता रहता है । ऐसी दशा में दोनों के बीच स्थापित सन्तुलन टूट जाता है और उसके फलस्वरूप कीमत तथा विनिमय की मात्राओं पर अलग-अलग प्रभाव पड़ते हैं ।

सन्तुलन में परिवर्तन की कुछ सम्भावित दशाएँ निम्नलिखित हैं:

(i) केवल माँग में परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Changes in Demand):

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पूर्ति के यथास्थिर रहते हुए माँग की वृद्धि अथवा कमी कीमत को क्रमशः बढ़ायेगी अथवा घटायेगी । इस स्थिति को चित्र 2 में स्पष्ट किया गया है । आरम्भिक सन्तुलन बिन्दु K है जहाँ माँग एवं पूर्ति की मात्राएँ OQ के बराबर हैं तथा निर्धारित कीमत OP के बराबर है । माँग में वृद्धि होने के कारण माँग वक्र DD के स्थान पर D1D1 हो जाता है ।

स्थिर पूर्ति वक्र SS तथा परिवर्तित माँग वक्र D1D1 का सन्तुलन बिन्दु K1 है जिस पर कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है ।

इसके विपरीत माँग के कम हो जाने पर माँग वक्र D2D2 हो जाता है । इस नये माँग वक्र पर K2 बिन्दु पर नया सन्तुलन उपस्थित होता है जहाँ वस्तु की कीमत OP से घटकर OP2 तथा विनिमय मात्रा OQ से घटकर OQ2 रह जाती है ।

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इस प्रकार स्पष्ट है कि पूर्ति के स्थिर रहने पर माँग की वृद्धि से सन्तुलन कीमत तथा विनिमय मात्रा दोनों में वृद्धि हो जाती है और माँग वक्र दायें आ जाता है । इसके विपरीत पूर्ति के स्थिर रहने पर माँग की कमी के कारण वस्तु की कीमत एवं विनिमय मात्रा दोनों में कमी हो जाती है और माँग वक्र बायीं ओर स्थानान्तरित हो जाता है ।

(ii) केवल पूर्ति में परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Changes in Supply):

माँग के स्थिर रहने की दशा में पूर्ति की वृद्धि अथवा कमी वस्तु की कीमत को क्रमशः घटायेगी अथवा बढ़ायेगी । इस स्थिति को चित्र 3 में दिखाया गया है । सन्तुलन का आरम्भिक बिन्दु K है जहाँ वस्तु की कीमत OP तथा विनिमय मात्रा OQ है ।

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पूर्ति की वृद्धि दशा में पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है जिसके कारण विनिमय मात्रा बढ़कर OQ1 हो जाती है किन्तु कीमत घटकर OP1 रह जाती है । इसके विपरीत पूर्ति घटने पर पूर्ति वक्र S2S2 हो जाता है जहाँ विनिमय घटकर OQ2 रह जाता है किन्तु कीमत बढ़कर OP2 हो जाती है ।

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इस प्रकार स्पष्ट है कि माँग के स्थिर रहते यदि पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है तब नवीन कीमत कम होगी तथा नवीन विनिमय मात्रा बढ़ जायेगी । इसके विपरीत पूर्ति की मात्रा में कमी होने पर नवीन कीमत बढ़ जायेगी तथा विनिमय मात्रा कम हो जायेगी ।

(iii) माँग तथा पूर्ति में साथ-साथ परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Simultaneous Change in Demand & Supply):

जब माँग एवं पूर्ति में एक साथ परिवर्तन होते हैं तब सन्तुलन कीमत और विनिमय मात्रा पर अलग-अलग प्रभाव पड़ते हैं ।

माँग एवं पूर्ति परिवर्तन की तीन दशाएँ उत्पन्न हो सकती हैं:

a. जब माँग और पूर्ति में समान परिवर्तन होता है तब नवीन सन्तुलन कीमत यथास्थिर (OP) रहती है केवल विनिमय की मात्रा में वृद्धि (OQ से OQ1) होती है (देखें चित्र 4) ।

b. जब पूर्ति की तुलना में माँग में अधिक वृद्धि होती है तब सन्तुलन कीमत में वृद्धि हो जाती है । चित्र 5 में पूर्ति की तुलना में माँग की वृद्धि अधिक है, फलस्वरूप सन्तुलन कीमत में PP1 की वृद्धि हो जाती है ।

c. जब माँग की तुलना में पूर्ति में अधिक वृद्धि हो जाती है तब सन्तुलन कीमत में कमी हो जाती है । चित्र 6 में माँग की तुलना में पूर्ति की वृद्धि अधिक है फलस्वरूप सन्तुलन कीमत में PP1 की कमी हो जाती है ।

(iv) संयुक्त माँग दशाओं में परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Change in Conditions of Joint Demand):

जब दो वस्तुओं का उपभोग एक-दूसरे से जुड़ा होता है तब उन्हें संयुक्त माँग की वस्तुएँ कहते हैं; जैसे – दूध और चाय, कार और पेट्रोल, डबल रोटी और मक्खन आदि ।

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ऐसी दशाओं में एक वस्तु की माँग का परिवर्तन दूसरी वस्तु की माँग में समान परिवर्तन उत्पन्न करता है लेकिन चूँकि दोनों की उत्पादन दशाएँ समान नहीं होती हैं इसलिए माँग परिवर्तन के कारण दोनों की कीमतों में समान परिवर्तन न होकर कीमतों के परिवर्तन अलग-अलग होते हैं ।

दोनों वस्तुओं की कीमतों में कितना परिवर्तन होगा यह दोनों वस्तुओं की पूर्ति की लोच पर निर्भर करता है । इस स्थिति की व्याख्या चित्र 7 में की गयी है ।

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चित्र से स्पष्ट है कि चाय की माँग में वृद्धि होने से दूध की माँग में भी समान वृद्धि (OQ1 = OQ2) होती है किन्तु दोनों की पूर्ति दशाएँ भिन्न-भिन्न होने के कारण दूध की कीमत में चाय की कीमत की अपेक्षा अधिक वृद्धि पायी जाती है ।

(v) संयुक्त पूर्ति दशाओं में परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Change in Conditions of Joint Supply):

जब दो वस्तुओं की पूर्ति अथवा उत्पादन एक साथ होते हैं तब ऐसी वस्तुओं को संयुक्त पूर्ति वाली वस्तुएँ कहा जाता है जैसे – गेहूँ और भूसा, रुई और बिनौला आदि ।

इस दशा में यदि एक वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन होता है तो दूसरी वस्तु की पूर्ति में भी समान अनुपात में परिवर्तन होता है । लेकिन दोनों वस्तुओं की माँग दशाएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं । अतः एक वस्तु की माँग का परिवर्तन दूसरी वस्तु की कीमत में समान परिवर्तन उत्पन्न नहीं करेगा । इस स्थिति को चित्र 8 में दिखाया गया है ।

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चित्र से स्पष्ट है कि गेहूँ की माँग में एक निश्चित वृद्धि (OQ से OQ1) के फलस्वरूप भूसे की पूर्ति में वही समान परिवर्तन (OQ से OQ2 जहाँ OQ1 = OQ2) होता है । लेकिन दोनों वस्तुओं की माँग की दशाएँ अलग-अलग होने के कारण गेहूँ की कीमत में तो वृद्धि होती है (चित्र में OP से OP1) तथा भूसे की कीमत में कमी आती है (चित्र में OP से OP2) ।