Here is an essay on the ‘Techniques of Demand Forecasting’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay # 1. विद्यमान वस्तुओं का पूर्वानुमान (Demand Forecasting of Established Products):

विद्यमान वस्तुओं के माँग पूर्वानुमान की निम्नलिखित पद्धतियाँ प्रचलित हैं ।

जैसा कि चार्ट में दर्शाया गया है:

(I) अनुभव आधारित अनुमान पद्धति (Experience Based Conjecture Method):

ADVERTISEMENTS:

जब कोई व्यक्ति कुछ उत्पादों के विक्रय प्रबन्धक के रूप में कार्य कर लेता है तो उसे माँग के प्रभावित करने वाले निर्धारकों का निकट से अनुभव हो जाता है और वह इसी अनुभव के आधार पर भावी माँग का अनुमान लगा मकता है यद्यपि इसमें वैज्ञानिक विश्लेषण का अभाव है परन्तु व्यवहार में यह देखने में आता है कि व्यवसाय के मुंशी या मुनीम के द्वारा लगाये गये पूर्वानुमान व्यवस्थित पूर्वानुमान की तुलना में अधिक सही उतरते हैं ।

(II) सर्वेक्षण विधि (Survey Method):

1. क्रेताओं की इच्छाओं का सर्वेक्षण पद्धति (Survey of Buyers Intentions):

ADVERTISEMENTS:

अल्पकाल में नाँग अनुमानित करने की सबसे सीधी विधि यह है कि ग्राहकों से पूछा जाये कि भविष्य में, (जैसे आगामी वर्ष में) वे क्या खरीदने की योजना बना रहे हैं । सभी क्रेताओं द्वारा भविष्य में माँगी जा सकने वाली मात्राओं को जोड़ देने से फर्म की कुल भावी माँग का पूर्वानुमान तैयार को जाता है ।

क्रेताओं की इच्छाओं का सर्वेक्षण करने के लिए निम्नलिखित दो विधियाँ प्रचलित हैं:

(a) संगणना पद्धति (Census Method) तथा

(b) नमूना सर्वेक्षण पद्धति (Sample Survey Method).

ADVERTISEMENTS:

(a) संगणना पद्धति (Census Method):

इस रीति के अन्तर्गत कम्पनी के सर्वेक्षण सभी क्रेताओं से साक्षात्कार करके उनके द्वारा कम्पनी की वस्तु की भावी खरीद की इच्छा का पता लगाते हैं । यह विधि उस समय उपयुक्त होती है जबकि क्रेताओं की संख्या सीमित हो या बाजरा छोटा हो ।

(b) नमूना सर्वेक्षण पद्धति (Sample Survey Method):

जब वस्तु का बाजार विस्तृत होता है और क्रेताओं की संख्या अधिक होती है तो सभी का साक्षात्कार करना सम्भव नहीं होता, ऐसी स्थिति में नमूने के तौर पर कुछ ऐसे ग्राहकों से पूछा जाता है जो सभी ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके आधार पर सम्पूर्ण बाजार की माँग का पूर्वानुमान किया जाता है । यदि न्यादर्श उपयुक्त हुआ तो निष्कर्ष काफी सही उतरते हैं किन्तु नमूने की त्रुटि का भय बना रहता है ।

2. अन्तिम उपयोग पद्धति (End Use Method):

इस विधि के अनुसार विचाराधीन वस्तु का माँग पूर्वानुमान मध्यवर्ती के रूप में उपयोग करने वाले उद्योगों के माँग सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है ।

इस सन्दर्भ में इस वस्तु का उपयोग करने वाले उद्योगों की उत्पादन योजनाओं और आगात-निर्गत (Input-Output) गुणांक का सर्वेक्षण किया जाता है । यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि कोई मध्यवर्ती वस्तु अन्तिम उपयोग वस्तु भी हो सकती है और किसी मध्यवर्ती वस्तु की माँग देशी और विदेशी दोनों बाजारों में हो सकती है ।

गुण (Merits):

क्रेताओं की इच्छाओं के सर्वेक्षण पद्धति के पक्ष में निम्नलिखित बातें कही जाती हैं:

ADVERTISEMENTS:

(i) क्रेताओं एवं ग्राहकों से निकट सम्पर्क रहता है इसलिए पूर्वानुमान सत्यता के निकट होते हैं यदि क्रेता सही सूचना देते हैं ।

(ii) यह अल्पकालीन पूर्वानुमानों के लिए सबसे सरल एवं उपयुक्त पद्धति है ।

दोष (Demerits):

क्रेताओं की इच्छाओं में सर्वेक्षण पद्धति के विपक्ष में निम्नलिखित बातें कही जाती हैं:

ADVERTISEMENTS:

(i) क्रेताओं की इच्छाओं में अनिश्चितता, अनियमितता तथा वास्तविकता की स्थिति में त्रुटिपूर्ण पूर्वानुमान हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं ।

(ii) संगणना पद्धति में समय, शक्ति एवं धन काफी व्यय होता है जबकि नमूना सर्वेक्षण पद्धति में नमूने की त्रुटि का भय बना रहता है ।

(iii) यह विधि उन चरों या घटकों पर ध्यान नहीं देती जिसके द्वारा प्रबन्धक अपनी वस्तुओं की अधिक माँग उत्पन्न करने में सफल हो जाते हैं; जैसे – विज्ञापन, किस्म सुधार आदि ।

विधि की उपयुक्तता (Suitability of Methods):

ADVERTISEMENTS:

माँग पूर्वानुमान की क्रेताओं की इच्छाओं की सर्वेक्षण विधि तभी उपयुक्त रहती है जबकि,

(a) क्रेताओं की संख्या सीमित हो;

(b) क्रेताओं के इरादे स्पष्ट हों;

(c) वे अपने इरादों को बताने के इच्छुक हों;

(d) वे अपने इरादों के अनुरूप चलते हों तथा

(e) साक्षात्कार कम खर्चीला हो सामान्यतया यह विधि औद्योगिक उत्पादनों, टिकाऊ उपयोग वस्तुओं तथा नये उत्पादनों के प्रवेश के पूर्वानुमानों में उपयुक्त मानी जाती है ।

ADVERTISEMENTS:

3. विक्रय में संलग्न व्यक्तियों की सामूहिक राय पद्धति (Composite of Sales-Force Opinion or Collective Opinion Method):

जहाँ क्रेताओं के इरादे जानना कठिन होता है, वहाँ फर्म अपनी वस्तुओं के विक्रय में संलग्न विक्रय प्रतिनिधियों व शाखा प्रबन्धकों को अपने-अपने क्षेत्रों या विभागों के माँग पूर्वानुमान तैयार करने को कहती है ।

इस विधि का औचित्य यह है कि ग्राहकों के अधिक से अधिक निकट होने के कारण विक्रय प्रतिनिधियों को बाजार का सबसे अच्छा अनुभव अथवा ज्ञान होता है और वे बहुत अच्छी तरह से यह बता सकते हैं कि फर्म की वस्तुओं के प्रति ग्राहकों की प्रतिक्रियाएँ क्या हैं तथा बिक्री की प्रवृत्तियाँ क्या हैं ?

इस विधि के अन्तर्गत अलग-अलग विक्रय प्रतिनिधियों के अनुमानों का समूहीकरण करके कुल बिक्री का अनुमान लगाया जाता है । इस अनुमान का पुनर्निरीक्षण किया जाता है, ताकि कुछ विक्रय प्रतिनिधियों के अनुमानों में आशावादी झुकाव तथा कुछ में निराशावादी झुकाव दूर किये जा सकें ।

यह पुनर्निरीक्षण अनुमान कुछ तत्वों; जैसे – विक्रय मूल्यों में परिवर्तन, वस्तु की डिजाइनों में तथा विज्ञापन योजनाओं में प्रस्तावित परिवर्तन, प्रतियोगिता में सम्भव परिवर्तन तथा दीर्घकालीन शक्तियों (जैसे – क्रय शक्ति, आय वितरण, बेरोजगारी) में परिवर्तन आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है ।

अन्य शब्दों में, इन समस्त घटकों को ध्यान में रखने के बाद ही अन्तिम पूर्वानुमान किया जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

इस बिधि को सामूहिक राय पद्धति इसलिए कहते हैं कि इसके विक्रय प्रतिनिधियों, क्षेत्रीय एवं शाखा प्रबन्धकों तथा विक्रय प्रबन्धक आदि के अतिरिक्त कम्पनी के प्रबन्धकीय अर्थशास्त्री तथा उच्च कार्याधिकार (Top Executives) की सामूहिक राय का उचित सम्मिश्रण एवं समन्वय करके पूर्वानुमान किया जाता है ।

इसके अतिरिक्त इसमें विक्रय स्टाफ (Staff) सामूहिक राय की प्रमुखता के कारण इसे विक्रय स्टाफ पद्धति भी कहते हैं ।

लाभ (Merits):

(i) यह विधि सरल होती है तथा इसमें सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग नहीं किया जाता ।

(ii) यह विधि नई वस्तुओं के विक्रय का अनुमान करने में बहुत ही उपयोगी हो सकती है । इतना अवश्य है कि ऐसी दशा में विक्रय प्रतिनिधियों को वर्तमान वस्तुओं की अपेक्षा अपने विवेक पर अधिक निर्भर करना पड़ेगा ।

(iii) अनुमानों को विक्रय प्रतिनिधियों तथा अन्य व्यक्तियों के जो बिक्री करने से सीधे सम्बन्धित हों, प्राथमिक ज्ञान के आधार पर ही तैयार किया जाता है, अतः अनुमान अधिक सही होते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

(iv) यह विधि अल्पकालीन माँग पूर्वानुमान के लिए उपयुक्त विधि है ।

दोष (Demerits):

(i) इस विधि में विक्रय प्रतिनिधियों की व्यक्तिगत भावना की प्रधानता रहती है, अतः वे अधिक आशावादी अथवा निराशावादी हो सकते हैं ।

(ii) यह विधि कारण और परिणाम का विश्लेषण नहीं करती है, अतः इसमें वैज्ञानिकता का अभाव है ।

(iii) इस विधि की उपयोगिता अल्पकालीन पूर्वानुमान तक ही सीमित है अर्थात् ऐसे अनुमानों तक जिसकी अवधि लगभग एक वर्ष तक हो ।

(iv) विक्रय प्रतिनिधि उन व्यापक आर्थिक परिवर्तनों से अनभिज्ञ हो सकते हैं जिनका प्रभाव भावी माँग पर पड़ता हो ।

ADVERTISEMENTS:

4. आर्थिक संकेतांक अथवा व्यवसाय सूचकांक पद्धति (Economic Indicators or Business Indices Method):

इस विधि के अन्तर्गत पूर्वानुमान के लिए कुछ निश्चित आर्थिक सूचकांक को आधार के रूप में प्रयोग किया जाता है । इस विधि के अन्तर्गत जिन वस्तुओं की माँग का पूर्वानुमान लगाना होता है, उनकी माँग को प्रभावित करने वाले सम्बन्धित घटकों के आर्थिक सूचकांकों को एकत्रित किया जाता है ।

जैसे:

(a) उपभोक्ता वस्तुओं की माँग के लिए व्यक्तिगत आय (Personal Income),

(b) निर्माण सामग्री की माँग (जैसे – सीमेण्ट) का पूर्वानुमान करने के लिए स्वीकृत निर्माण ठेके,

(c) कार के पुर्जों, पेट्रोल आदि की माँग के लिए कारों की रजिस्ट्रेशन संख्या,

(d) कृषि सम्बन्धी आदाओं (Inputs), जैसे – औजार, उर्वरक (Fertilizers) की माँग के लिए कृषि आय,

(e) रेडियो, पंखे, फर्नीचर आदि के सम्बन्ध में जनसंख्या के संकेतांक आदि । ये आर्थिक सूचकांक विशिष्ट संगठनों द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं; जैसे – भारत में केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (C.S.O.), राष्ट्रीय आय सम्बन्धी अनुमान और जनसंख्या संगणना विभाग जनसंख्या सम्बन्धी सूचना देता है ।

गुण (Merits):

(i) यह विधि सरल, स्पष्ट और मितव्ययी है ।

(ii) तार्किक आधार होने के कारण पुर्वानुमान अधिक विश्वसनीय होता है ।

दोष (Demerits):

(i) वस्तु की माँग से सम्बन्धित आर्थिक संकेतक कौन-से हैं तथा वे वस्तु की माँग को कितना प्रभावित करते हैं, ज्ञात करना होता है ।

(ii) नई वस्तुओं के पूर्वानुमान के लिए यह विधि अनुपयुक्त होती है क्योंकि पिछले आँकड़े होते ही नहीं ।

5. विशेषज्ञ विचार विधि (Expert Opinion Method):

इस विधि के अन्तर्गत फर्म सम्बन्धित क्षेत्रों के अपने विशेषज्ञों के पूर्वानुमान सम्बन्धी विचार प्राप्त करना चाहती है ।

इसके अन्तर्गत पूर्वानुमान दो प्रकार से किये जाते हैं:

(a) सरल विधि

(b) डेल्फी विधि ।

(a) सरल विधि:

सरल विधि के अन्तर्गत विभिन्न विशेषज्ञों के द्वारा दिये गये गोपनीय पूर्वानुमान संख्याओं का सरल या भारित औसत निकाला जाता है और अपने सुविचारित निर्णय से परखकर आवश्यक पूर्वानुमान पर पहुँचा दिया जाता है ।

(b) डेल्फी तकनीक (Delphi Technique):

विकसित देशों में व्यावसायिक फर्में प्रायः अलग-अलग स्रोतों से किसी वस्तु की माँग के पूर्वानुमानों की विश्वसनीयता को बढ़ाने हेतु डेल्फी तकनीक का आश्रय लेती हैं । इस तकनीक के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों के पैनल से प्राप्त पूर्वानुमानों में बहुत अधिक अन्तर होने पर उन्हें तब तक इनमें संशोधन करने को कहा जाता है जब तक कि ये अन्तर न्यूनतम नहीं हो जाते ।

उदाहरण के लिए, चार व्यक्तियों के एक पैनल ने सूती कपड़े की माँग में अगले पाँच वर्षों में क्रमशः 60 प्रतिशत, 50 प्रतिशत व 30 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान किया । अब चारों व्यक्तियों को कहा जायेगा कि वे अपने पास उपलब्ध आँकड़ों व सूचनाओं की समीक्षा करके पुनः पूर्वानुमान प्रस्तुत करें ।

कल्पना कीजिए अब, ये मवानुमान 50 प्रतिशत, 30 प्रतिशत, 40 प्रतिशत तथा 35 प्रतिशत वृद्धि दर्शाते हैं । इसी प्रकार तीसरी बार समीक्षा करने पर संशोधित पूर्वानुमान 48 प्रतिशत, 45 प्रतिशत, 42 प्रतिशत तथा 44 प्रतिशत हो जाते हैं ।

चूँकि प्राप्त पूर्वानुमानों में अब काफी निकटता आ चुकी होती है, इनका औसत लेकर अगले पाँच वर्षों में कपड़े की माँग में होने वाली वृद्धि का लगभग सही पूर्वानुमान किया जा सकता है ।

परन्तु डेल्फी तकनीक अपेक्षाकृत महँगी है क्योंकि बार-बार समीक्षा करके पूर्वानुमान में संशोधन करने से समय तथा लागत दोनों अपव्यय होने की आशंका रहती है ।

6. बाजार परीक्षण पद्धति (Market Experiments Method):

बड़ी-बड़ी व्यापारिक फर्मों में अपने सांख्यकीय एवं शोध विभाग होते हैं और उसमें कार्यरत व्यक्ति बाजार सर्वेक्षण एवं सूचनाओं के विश्लेषण के द्वारा भावी माँग का पूर्वानुमान लगाते हैं ।

इसके निम्नलिखित दो रूप हैं:

(a) वास्तविक बाजार परीक्षण विधि (Actual Market Experiment Method):

इस विधि के अन्तर्गत फर्म सर्वप्रथम, समान विशेषताओं वाले प्रतिनिधि बाजारों के कुछ क्षेत्रों का चुनाव करती है । आगे, फर्म इन क्षेत्रों में एक या अधिक माँग निर्धारकों को परिवर्तित कर परीक्षण प्रारम्भ करती है और परिणामों के आधार पर लोच गुणांकों की गणना की जाती है । फिर, माँगफलन के चरों के साथ इन गुणाकों का प्रयोग वस्तु विशेष का माँग पूर्वानुमान के लिए किया जाता है ।

(b) बाजार अनुरूपण विधि पद्धति (Market Simulation Method):

इस विधि के अन्तर्गत एक बनावटी उपभोक्ता दल गठित किया जाता है जिसे नवीन वस्तु से भी सम्बन्धित कई व्यावसायिक विज्ञापन दिखाये जाते हैं । उन्हें मुद्रा भी दी जाती है । जिसे वे खर्च कर सकते हैं या अपने पास रख सकते हैं ।

परीक्षण के दौरान विभिन्न वस्तुओं की कीमतें उनकी पैकेजिंग, गुणवत्ता आदि परिवर्तित किये जाते हैं, ताकि इन परिवर्तनों के फलस्वरूप उपभोक्ताओं की प्रतिक्रियाओं का अवलोकन किया जा सके । इस तरह से प्राप्त सूचना निश्चय ही पूर्वानुमान के लिए सन्तोषप्रद होगी ।

i. इस पद्धति में माँग का गहन विश्लेषण करने का अवसर मिलता है ।

ii. प्रायः निरन्तर पूर्वानुमान एवं वास्तविक बिक्री की तुलना करते रहने से पूर्वानुमानों की तुलना के साथ-साथ आवश्यक समायोजना का लाभ भी मिलता है ।

दोष (Demerits):

(i) प्रतिदर्श (सेम्पल) पर्याप्त रूप से बड़ा हो तथा उपभोक्ताओं के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करता हो । अन्य शब्दों में, थोड़े-से उपभोक्ताओं से आँकड़े एकत्रित करने से अर्थ पूर्ण निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते ।

(ii) सर्वेक्षण करने वाले व्यक्ति निष्पक्ष एवं कार्य में निपुण हों ।

(iii) वस्तु की स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतों तथा वर्तमान व प्रस्तावित आपूर्ति के आँकड़े भी एकत्रित किये जायें ।

(iv) प्रश्नावली इस प्रकार निरूपित की जाये कि अधिक से अधिक उपभोक्ता सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकें । सर्वेक्षणकर्त्ता अपनी ओर से उत्तरों में कोई संशोधन न करें ।

(III) सांख्यिकीय विधि (Statistical Method):

सांख्यिकीय विधि के अन्तर्गत अर्थमिति मॉडल के माध्यम से पिछला अनुभव अर्थात् ऐतिहासिक आँकड़ों का विश्लेषण किया जाता है और उसके आधार पर माँग पूर्वानुमान किये जाते हैं ।

इसके अन्तर्गत मुख्य विधियाँ निम्न हैं:

1. ऐतिहासिक संमकों की सांख्यिकीय विश्लेषण पद्धति (Statistical Analysis of Historical Data Methods):

पूर्वानुमान की यह विधि फर्म के अतीत के अनुभवों पर आधारित है । इस विधि में हम फर्म के उत्पाद के अतीत की माँग-सम्बन्धी सूचना का प्रयोग करते हैं ।

इस विधि में यह मान्यता ली जाती है कि फर्म का माँग फलन अर्थात् उत्पाद का माँग वक्र अपरिवर्तित रहता है । उत्पाद की कीमत में परिवर्तन उत्पाद की पूर्ति दशाओं में अन्तर के कारण उत्पन्न होते हैं ।

चित्र 1 से स्पष्ट है कि:

(i) विभिन्न समयावधियों में माँग वक्र DD1 अपरिवर्तित रहता है लेकिन पूर्ति वक्र S1, S2, S3 बदलता रहता है ।

(ii) पहली समयावधि में पूर्ति के लिए S1 वक्र खींचा गया है, दूसरी समयावधि के लिए S2 वक्र तथा तीसरी समयावधि के लिए S3 वक्र ।

(iii) चित्र 1 में तीन साम्य स्थितियों को भी A, B, C द्वारा चित्रित किया गया है ।

(iv) यदि हमें फर्म के सम्बन्ध में A, B और C बिन्दुओं के सम्बन्ध में जानकारी हो परन्तु उस वस्तु से सम्बन्धित व पूर्ति के बारे में ज्ञान न भी हो तो हम इस मान्यता के आधार पर कि फर्म का माँग फलन यथा स्थिर रहता है, A, B और C बिन्दुओं की सूचना के आधार पर माँग वक्र का निर्माण कर सकते हैं ।

(v) यदि यह मान लिया जाये कि फर्म के उत्पाद के माँग की प्रवृत्ति अपरिवर्तित बनी रहती है तो हम उत्पाद की भावी माँग का पूर्वानुमान कर सकते हैं ।

2. प्रवृत्ति या उपनति प्रक्षेपण विधि (Trend Projection Method):

व्यावसायिक जगत में समय के साथ-साथ परिवर्तन की स्वाभाविक प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है । अतः किसी वस्तु की माँग की प्रवृत्ति का अध्ययन समय श्रेणी के आधार पर किया जा सकता है । अतः उपनति प्रक्षेपण इस बात को व्यक्त करता है कि लम्बे समय में वस्तु की माँग में किस प्रकार का परिवर्तन होता है ।

उपनति प्रक्षेपण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:

(i) समय के किसी माप (जैसे-वर्ष, माह, दिन) के आधार पर प्रस्तुत समंकों के व्यवस्थित क्रम की श्रेणी समय श्रेणी (Time Series) अथवा ऐतिहासिक चल मूल्य (Historical Variables) कहलाती है ।

(ii) समय श्रेणी के अन्तर्गत स्वतन्त्र चल मूल्य (Independent Variables) समय के प्रतीक होते हैं तथा आश्रित चल मूल्य (Dependent Variables) समंकों पर समय के साथ-साथ होने वाले परिवर्तनों के प्रभावों को प्रस्तुत करते हैं ।

(iii) उपनति प्रक्षेपण में समय श्रेणी के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि यदि माँग की प्रवृत्ति भूतकाल जैसी रहे तथा अन्य परिस्थितियाँ सामान्य रहें तो वस्तु की आगामी वर्ष या वर्षों में कितनी माँग होगी?

(iv) माँग पूर्वानुमान में उपनति या प्रवृत्ति (Trend) ज्ञात करना बहुत महत्वपूर्ण है । दीर्घकालीन प्रवृत्ति या उपनति ज्ञात करने के लिए अनेक रीतियों, जैसे –स्वतन्त्र हस्त वक्र रीति (Free Hand Curve Method), अर्द्धमध्यक (Semi-Average Method), न्यूनतम वर्ग रीति (Method of Least Squares) आदि प्रयोग की जाती हैं किन्तु इन समस्त रीतियों में न्यूनतम वर्ग रीति श्रेष्ठ है ।

न्यूनतम वर्ग विधि (Least Squares Method):

न्यूनतम वर्ग विधि से एक ऐसे समीकरण का निर्माण किया जाता है जिसकी सहायता से एक सरल रेखा खींची जा सकती है जिसे बेस्ट फिट की सरल रेखा (Line of Best Fit) का नाम दिया जाता है ।

इस प्रकार की सरल रेखा निम्न समीकरण की सहायता से खींची जा सकती है:

Y = a + bX

जहाँ पर,

Y = पूर्वानुमान मूल्य

a = स्थिर मूल्य

b = दीर्घकालिक प्रवृत्ति का अर्थात् विकास की दर

X = समय की इकाई को व्यक्त करता है ।

इस विधि की गणना निम्न प्रकार से की जाती है:

i. एक निश्चित समय से श्रेणी के प्रत्येक समय का काल विचलन (X) निकालना और उसका योग (ΣX) ज्ञात करना ।

ii. काल-विचलनों के वर्ग (X2) निकालना और उसका योग (ΣX2) ज्ञात करना ।

iii. पदों और काल-विचलनों के गुणनफल (XY) निकालना और उसका योग (ΣXY) ज्ञात करना ।

iv. उत्पत्ति ज्ञात करने के लिए a (Constant Variables) और b (Rate of Growth) के मूल्य ज्ञान करना क्योंकि उपनति a + bX के बराबर होती है ।

माप की वैकल्पिक विधियाँ:

न्यूनतम वर्ग विधि द्वारा उपनति का माप निम्न दो विधियों से किया जाता है:

I. प्रत्यक्ष विधि:

(a) यदि पदों की संख्या विषम हो एवं

(b) यदि पदों की संख्या सम हो

II. अप्रत्यक्ष या लघु विधि.

I. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method):

इस विधि में उपनति a + bX ज्ञात करने के लिए a और b का मूल्य क्रमशः clip_image006_thumb1 एवं clip_image008_thumb1 के बराबर होता है । यह उल्लेखनीय है कि इस विधि का प्रयोग केवल वहीं किया जा सकता है जहाँ समय-विचलनों का योग शून्य (ΣX = 0) हो ।

(a) यदि पदों की संख्या विषम हो:

यदि पदों की संख्या विषम (Odd) हो, दिये हुए समयों का अन्तर समान हो तो मध्य समय को आधार मानकर विचलन निकालने पर विचलनों का योग शून्य होगा ।

उदाहरण 1:

अगले पाँच वर्षों के लिए बिक्री की प्रवृत्ति का अनुमान लगाइये (Project the trend of sales for the next five year):

(b) यदि पदों की संख्या सम (Even) हो:

पदों की संख्या के सम होने पर भी प्रत्यक्ष विधि का प्रयोग किया जा सकता है । इसके लिए सम संख्या के मध्य के वर्ष से विचलन ज्ञात किये जा सकते हैं ।

इसे निम्न उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है:

उदाहरण 2:

निम्नांकित आँकड़ों की सहायता से अगले पाँच वर्षों की बिक्री की प्रवृत्ति का अनुमान कीजिए (With the help of the following data, project the trend of sales for the next five year):

II. अप्रत्यक्ष या लघु विधि (Indirect or Short Cut Method):

विचलनों का योग सर्वदा शून्य नहीं होता । यदि श्रेणी के विाभिन्न समयों का अन्तर समान न हो, अन्तर समान होने पर मध्य समय से विचलन न निकाले जायें तो विचलनों का योग्य शून्य नहीं होगा । ऐसी परिस्थिति में प्रत्यक्ष विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता वरन् अप्रत्यक्ष विधि से उपनति ज्ञात की जायेगी ।

अप्रत्यक्ष विधि का प्रयोग उस दशा में ही किया जाना चाहिए जबकि (Σx = 0) हो किन्तु गणना की दृष्टि से अप्रत्यक्ष विधि का प्रयोग उस दशा में ही किया जाना चाहिए जबकि Σx = 0 न हो ।

अप्रत्यक्ष विधि में उपनति में a + bx ज्ञात करने के लिए a और b का मूल्य निम्न युग्म समीकरणों को हल करके ज्ञात होगा:

Σy = na + b Σx

Σxy = Σx + b Σx2

उदाहरण 3:

अगले पाँच वर्षों के लिए बिक्री की प्रवृत्ति का अनुमान लगाइए (Project the trend of sales for the next five year):

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उपयुक्त समीकरण का प्रयोग आगामी 5 वर्षों में विक्रय उपनति का मूल्य (Trend Values) मालूम करने के लिए करेंगे ।

सर्वप्रथम हम 1989 से 1993 तक का उपनति मूल्य निकालेंगे:

अब हम आगामी 5 वर्षों का उपनति का विक्रय मूल्य ज्ञात करेंगे:

उदाहरण 4:

निम्नांकित आँकड़ों की सहायता से छः वर्षों में से प्रत्येक की बिक्री की प्रवृत्ति का अनुमान लगाइए (With the help of the following data, project the trend of sales for the each of the six years):

उपनति प्रक्षेपण पद्धति के गुण:

(i) यह पद्धति भूतकालीन वास्तविक विक्रय समंकों पर आधारित है, समंकों के संकलन का व्यय बच जाता है और आँकड़े विश्वसनीय होते हैं ।

(ii) यदि माँग को प्रभावित करने वाले तत्व स्थिर रहें तथा विकास या वृद्धि दर के भविष्य में बनी रहने की सम्भावना हो, तो अनुमान सत्यता के निकट होते हैं ।

दोष:

(i) इस पद्धति के द्वारा पूर्वानुमान भ्रामक होते हैं यदि माँग को प्रभावित करने वाले घटकों में परिवर्तन हो जाता है ।

(ii) नये उपक्रम में जहाँ विक्रय अभी शुरू नहीं हुआ इस पद्धति का उपयोग नहीं किया जा सकता है ।

(iii) इस प्रकार की पद्धति में गणितीय और सांख्यिकीय पद्धतियों का अधिक प्रयोग किया जाता है जिसे साधारण व्यक्ति प्रयोग में नहीं ला सकते हैं ।

ग्राफ पेपर के द्वारा माँग पूर्वानुमान (Demand Forecast on Graph Paper):

माँग पूर्वानुमान ग्राफ पेपर के द्वारा भी किया जा सकता है । इसके लिए सर्वप्रथम न्यूनतम वर्ग रीति के द्वारा उपनति या प्रवृत्ति (Trend) ज्ञात की जाती है । इन उपनति मूल्यों (xy) को ग्राफ पेपर पर अंकित किया जाता है ।

इन बिन्दुओं को मिलाने से एक सरल रेखा प्राप्त होती है । इस रेखा को आगे बढ़ाकर भविष्य के लिए माँग पूर्वानुमान करते हैं । माँग पूर्वानुमान करने के लिए जिस वर्ष का अनुमान करना है, उस वर्ष (X-अक्ष) से लम्ब डाला जाता है । Y-अक्ष के इस बिन्दु का मान माँग पूर्वानुमान मूल्य होता है ।

ग्राफ पेपर द्वारा माँग पूर्वानुमान को हम निम्नांकित उदाहरण द्वारा अधिक अच्छे ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं:

उदाहरण 5:

ABC फर्म के कुछ वर्षों के उत्पादन समंक के साथ ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित की जिए (The following are the production figures of ABC firm for the years shown below. Fit a straight line trend of these figures and plots on the graph the actual figures together with trend values):

 

उपरोक्त प्रवृत्ति रेखा को ग्राफ पेपर पर निम्न तरीके से प्रदर्शित किया गया है:

इस ग्राफ में प्रवृत्ति दर को एक सरल रेखा द्वारा दिखाया गया है । सरल रेखा को देखने से ज्ञात हो रहा है कि प्रवृत्ति दर में वृद्धि हो रही है क्योंकि यह रेखा ऊपर की ओर जा रही है ।

3. बैरोमैट्रिक विधि (Barometric Method):

इस विधि के अन्तर्गत माँग का पूर्वानुमान करने वाला (या संस्था) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक जगत में होने वाले परिवर्तनों की स्वयं समीक्षा करता है । प्रायः यह व्यक्ति पर्याप्त रूप से अनुभवी एवं विश्वसनीय होता है तथा गम्भीर स्पष्ट से सभी घटकों का विश्लेषण करके किसी वस्तु की माँग में आगामी 5 या 10 वर्षों में होने वाली (प्रत्याशित) वृद्धि का अनुमान करता है ।

सरकारी नीतियों तथा निवेशकों के मूड, यानी शेयर बाजार की गतिविधियाँ से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा करने में वह सिद्धहस्त होता है । इन सबके आधार पर यह निर्दिष्ट वस्तु की भावी माँग के विषय में संकेत देता है ।

बैरोमैट्रिक विधि इस मान्यता पर आधारित है कि वर्तमान के कुछ आर्थिक और सांख्यिकीय संकेतों का उपयोग भविष्य में परिवर्तन की दशाओं के पूर्वानुमान के लिए किया जा सकता है ।

ये आर्थिक और सांख्यिकीय संकेतक अग्रलिखित हैं:

(a) आर्थिक संकेतक (Economic Indicator):

बैरोमैट्रिक विधि के आर्थिक संकेतक निम्नलिखित हैं:

i. प्रमुख संकेतक (Leading Indicator):

प्रमुख संकेतक वह चर है जो उस चर के भविष्यकालीन व्यवहार से सहसम्बन्धित है जिसके लिए पूर्वानुमान किया जाना है । उदाहरणार्थ, भवन निर्माण सामग्रियों के माँग पूर्वानुमान के लिए स्वीकृत भवन-निर्माण संविदाओं की संख्या प्रमुख संकेतक होगा ।

ii. पीछे रहने वाले संकेतक (Lagging Indicator):

ये संकेतक प्रमुख संकेतकों की गतिविधि के उपरान्त आगे या पीछे चलते हैं । उदाहरणार्थ, अल्पकालीन व्यवसाय ऋणों पर बैंक दर ।

iii. अनुरूप संकेतक (Coincident Indicator):

ये संकेतक प्रमुख संकेतकों की गतिविधि के अनुसार साथ-साथ बढ़ते हैं और घटते हैं; जैसे – व्यक्तिगत आय ।

(b) सांख्यिक संकेतक (Statistical Indicator):

i. प्रसार सूचक (Diffusion Indexes):

प्रसार सूचक उत्पादन या उपभोक्ता जैसे विशेष वर्ग में चुनिन्दा आर्थिक काल श्रेणियों की दशा और तीव्रता को दर्शाती है ।

ii. समिश्र सूचक (Composite Indexes):

सम्मिश्र सूचक कई चुनिन्दा एकल संकेतकों का प्रभावित औसत होता है ।

4. अर्थमितीय विधि (Econometric Method):

अर्थमितीय विधि के अन्तर्गत हम सांख्यिकी, गणित तथा आर्थिक सिद्धान्तों को संयुक्त रूप से एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत करते हैं । इसमें केवल प्रवृत्ति का ही विश्लेषण न करके विभिन्न चरों के पारस्परिक सम्बन्धों की भी व्याख्या की जाती है ।

इन सम्बन्धों को देखते हुए निर्णय कर्त्ता माँग के भावी स्तर का अनुमान अधिक सही रूप में कर सकता है । प्रायः अर्थमितीय रूप में माँग का पूर्वानुमान करने हेतु चार परस्पर सम्बन्ध सोपान जरूरी हैं ।

जो निम्न है:

(i) एक सैद्धान्तिक मॉडल का निरूपण,

(ii) आँकड़ों का संकलन,

(iii) निरूपित किये जाने वाले समीकरण के फलनिक स्वरूप का चयन तथा

(iv) प्राप्त निष्कर्षों का विश्लेषण एवं व्याख्या करना ।

गुण (Merits):

(a) इस पद्धति के द्वारा लगाये गये पूर्वानुमान अधिक तार्किक एवं विश्वसनीय होते हैं ।

(b) माँग से सम्बन्धित और उसे प्रभावित करने वाले सभी कार्यात्मक एवं आकस्मिक चरों का समावेश होने से यह पद्धति अधिक वैज्ञानिक है ।

(c) जटिल समीकरणों को हल करने में कम्प्यूटरों का प्रयोग शुद्धता को जन्म देता है ।

दोष (Demerits):

(a) यह पद्धति जटिल है, अतः सर्वसाधारण की समझ से बाहर है ।

(b) यह पद्धति अत्यन्त खर्चीली है, अतः छोटे व्यवसायी इसका उपयोग नहीं कर सकते ।

Essay # 2. नई वस्तुओं का माँग पूर्वानुमान (Demand Forecasting of a New Product):

पुरानी वस्तुओं और सेवाओं की माँग का पूर्वानुमान लगाने के लिए पिछले वर्षों के अनुभवों, सूचनाओं और वास्तविक विक्रय समंकों की सहायता ली जा सकती है तथा न्यूनतम वर्ग पद्धति के द्वारा उपनति प्रक्षेपण ज्ञात कर भावी माँग (विक्रय) पूर्वानुमान लगाना सम्भव हो जाता है किन्तु नसे उत्पाद के सम्बन्ध में ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं । अतः नई वस्तुओं के पूर्वानुमान का कार्य कठिन होता है ।

एक नये उत्पाद की माँग का पूर्वानुमान लगाने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं:

A. विकासात्मक धारणा (Evolutionary Approach):

विकासात्मक धारणा यह मानकर चलती है कि नवीन वस्तु वर्तमान पुरानी वस्तु का विकसित रूप है । अतः इस धारणा के अनुसार नवीन वस्तु का माँग पूर्वानुमान करते समय पुरानी वस्तु की चालू माँग दशाओं पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए ।

उदाहरण के लिए, यदि रंगीन टेलीविजन नई वस्तु है और उसकी माँग बढ़ती है, तो इसका अर्थ यह होगा कि काले व सफेद टेलीविजन की माँग घटेगी ।

यह विधि तभी उपयोगी हो सकती है जबकि नया उत्पाद किसी विद्यमान उत्पाद का इतना निकट विकल्प हो कि इसे उसका एक सुधरा रूप ही माना जाये ।

B. स्थानापन्न विधि (Substitute Approach):

इस विधि के अनुसार माँग पूर्वानुमान के लिए सर्वप्रथम यह पता लगाया जाता है कि हमारा नया उत्पाद किस प्रचलित उत्पाद अथवा उत्पादों का स्थानापन्न बनेगा । इसके पश्चात् अपने नये उत्पाद के गुण व मूल्य की अन्य प्रतियोगी उत्पादों से तुलना करते हुए नये उत्पाद के सम्भावित माँग का पूर्वानुमान लगाया जाता है । उदाहरणार्थ, हम बाल प्वाइन्ट पेन की विक्रय सम्भावना के आधार फाउण्टेन पेन की माँग का पूर्वानुमान लगा सकते हैं ।

C. मतदान प्रणाली (Opinion Polling Method):

इस विधि के अन्तर्गत नये उत्पाद के सम्भावित क्रेताओं से व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित किया जाता है और उन्हें उत्पाद का नमूना दिखाकर और उसके सम्बन्ध में अन्य जानकारियाँ उपलब्ध कराकर क्रेताओं की राय और पसन्दगी के आधार पर नये उत्पाद की माँग का पूर्वानुमान लगाया जाता है और उसके पश्चात् प्रदर्शित किये गये नमूने के आधार पर ही प्रक्षेपित माँग के अनुसार वस्तु का उत्पादन किया जाता है ।

इस विधि का अधिकांशतः प्रयोग नये इंजीनियरिंग के समान और मशीनों के माँग पूर्वानुमान के लिए किया जाता है ।

D. विकास वक्र विधि (Growth Curve Method):

इस विधि के अन्तर्गत प्रचलित उत्पादों की विकास की दर के आधार पर नये उत्पाद की विकास दर और माँग के अन्तिम स्तर का पूर्वानुमान लगाया जाता है उदाहरणार्थ, बाजार में प्रति व्यक्ति सभी घरेलू उपकरणों के विकास वक्रों के आधार पर हम किसी एक नये घरेलू उपकरण के बाजार की उपस्थिति का पूर्वानुमान लगा सकते हैं ।

इस विधि का उपयोग नये वायु मार्ग अथवा नये बस मार्ग के सम्भावित विकास के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है ।

E. विशेषज्ञों की राय की विधि अथवा उत्तरदायित्व विधि (Experts Opinion Approach or Various Approach):

इस विधि के अन्तर्गत नये उत्पाद की माँग पूर्वानुमान के लिए विशेषज्ञों की सलाह ली जाती है ।

विशेषज्ञों की सलाह तीन तरीकों से प्राप्त की जा सकती है जो निम्नलिखित हैं:

(a) व्यक्तिगत अन्तर्दृष्टि (Person Insight):

इस विधि के अन्तर्गत किसी ऐसे विशेषज्ञ की सलाह ली जाती है जो कि निजी अनुभवों और अध्ययनों के आधार पर फर्म के लिए भावी अनुमान प्रस्तुत करता है ।

(b) पैनेल की सहमति (Panel Consensus):

दूसरी विधि यह है कि फर्म एक व्यक्ति के अनुभवों तथा अध्ययनों की अपेक्षा विशेषज्ञों की समिति का गठन कर सकती है । इस समिति से यह अपेक्षा की जा सकती है कि इससे जुड़े विभिन्न व्यक्ति और सामूहिक अनुभवों तथा अध्ययनों को आपस में बाँटकर ऐसे पूर्वानुमान प्रस्तुत कर सकेंगे जो कि वास्तविकता के अधिक करीब हैं ।

(c) डेल्फी विधि (Delphi Method):

इस विधि के अनुसार भी:

i. विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाता है ।

ii. परन्तु समिति के सदस्यों में आपस में सीधा सम्पर्क नहीं होता ।

iii. नये उत्पाद की माँग से सम्बन्धित एक प्रश्नावली तैयार की जाती है और प्रत्येक सदस्य को उस प्रश्नावली के आधार पर अपने पूर्वानुमान लगाने के लिए कहा जाता है ।

iv. सदस्यों से प्राप्त उत्तरों को एक अन्य समिति को सौंप दिया जाता है जो कि इनका मूल्यांकन करती है ।

v. इन पूर्वानमानों को पुनः मूल समिति को सौंपा जाता है जो कि अन्तिम पूर्वानुमान तैयार करती है ।

F. बाजार परीक्षण की विधि अथवा विक्रय अनुभव की विधि (Market Test Approach or Sales Experience Approach):

इस विधि के अन्तर्गत नये उत्पाद को परीक्षण के तौर पर बाजार के किसी भाग में प्रत्यक्ष रूप से अथवा किसी सुपर बाजार या शृंखला विभाग (Chain Store) के माध्यम से कुछ समय के लिए बेचा जाता है और उसके प्राप्त परिणामों के आधार पर सम्पूर्ण बाजार के लिए पूरे वर्ष की माँग का पूर्वानुमान लगाया जाता है ।

G. जीवन चक्र खण्डीकरण विश्लेषण (Life Cycle Segmentation Analysis):

जीवन चक्र खण्डीकरण विश्लेषण वस्तु का जीवन चक्र दर्शाता है । नवीन वस्तुओं की माँग का पूर्वानुमान करने के लिए इस विश्लेषण का भी उपयोग किया जाता है ।

जीवन चक्र खण्डीकरण विश्लेषण के अनुसार वस्तु का एक जीवन चक्र होता है, अतः वस्तु की माँग का अनुमान लगाने के लिए यह जानना अत्यधिक आवश्यक होता है कि कोई वस्तु जीवन चक्र की किस विशेष अवस्था में कब होगी, उसके अनुरूप ही माँग का पूर्वानुमान किया जाता है । इसलिए वस्तु की विभिन्न अवस्थाओं के अनुरूप ही माँग पूर्वानुमान की अलग-अलग विधियाँ अपनायी जाती हैं ।

वस्तु के जीवन चक्र की निम्नलिखित पाँच अवस्थाएँ होती हैं:

i. प्रारम्भिक अवस्था (Introducing Stage):

वस्तु के जीवन चक्र की अवस्था में वस्तु की गुणवत्ता का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है, उसके उपरान्त विज्ञापन व प्रचार का स्थान आता है । इस अवस्था में कीमतों और सेवाओं का प्रभाव बहुत कम होता है, अतः वस्तु के जीवन चक्र की प्रथम अवस्था में अधिक विक्रय के लिए श्रेष्ठगुणवत्ता वाली वस्तुओं पर ही विशेष जोर दिया जाना चाहिए ।

ii. विकास अवस्था (Growth Stage):

इस अवस्था में विज्ञापन और प्रचार जैसे बिक्री बढ़ाने वाले प्रयासों का प्रबल प्रभाव होता है ।

iii. परिपक्वता अवस्था (Maturity Stage):

इस अवस्था में गुणवत्ता, विज्ञापन और सेवा की अपेक्षा कीमत अधिक महत्वपूर्ण होती है जबकि बाजार में प्रतियोगी प्रवेश कर चुके होते हैं । अतः अब कीमत लोचक होती है ।

iv. चरम सीमा अवस्था (Saturation Stage):

इस अवस्था के अन्तर्गत गुणवत्ता में वस्तु विभेदकरण, विज्ञापन, पैकेजिंग अधिक महत्वपूर्ण होते हैं । कारण यह है कि कीमत पहले ही कम हो चुकी होती है इसलिए कीमत अधिक महत्वपूर्ण नहीं होती है ।

v. ह्रास अवस्था (Decline Stage):

इस अवस्था में वस्तु का नवीन उपयोग, विज्ञापन आदि का विशेष महत्व होता है । यहाँ कीमत, गुणवत्ता और सेवा का कम महत्व हो जाता है ।

इस प्रकार वस्तु के जीवन चक्र की उपयुक्त अवस्थाएँ होती हैं जिन्हें चित्र 3 में दर्शाया गया है । चित्र में OX-अक्ष पर समय और OY-अक्ष पर बिक्री दर्शायी गई है और SS बिक्री वक्र से स्पष्ट है कि प्रथम और द्वितीय अवस्था में वस्तु की बिक्री तीव्र गति से बढ़ती है ।

तीसरी अवस्था में यद्यपि वस्तु की बिक्री बढ़ती है परन्तु बढ़ने की गति अपेक्षाकृत धीमी होती है । A और B बिन्दुओं के बीच वस्तु की बिक्री लगभग स्थिर रहती है परन्तु B बिन्दु के बाद वस्तु की बिक्री में गिरावट शुरू हो जाती है ।

जीवन चक्र खण्डीकरण चक्र विश्लेषण माँग पूर्वानुमान के लिए एक उपयोगी विधि है ।

निष्कर्ष:

नवीन वस्तुओं की माँग पूर्वानुमान की विभिन्न विधियाँ आपस में निरपेक्ष नहीं है बल्कि एक-दूसरे की पूरक हैं । प्रायः इनमें से कई विधियों का संयोग पूरक के रूप में आवश्यक हो जाता है, ताकि क्रॉस परीक्षण (Cross Checking) किया जा सके ।

जैसा कि प्रो. जोल डीन ने कहा है, ”उनमें से कई का संयोग प्रायः वांछनीय होता है ताकि वे एक-दूसरे के पूरक हो सकें ।” इसके अतिरिक्त नवीन वस्तुओं की माँग, पूर्वानुमान के लिए स्थापित वस्तुओं की माँग तथा पूर्वानुमान विधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है ।