Here is an essay on the ‘Elasticity of Demand and Its Measurement’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Elasticity of Demand and Its Measurement’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on the Elasticity of Demand


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Essay Contents:

  1. प्रारम्भिक (Introduction to the Elasticity of Demand)
  2. माँग की लोच की परिभाषा (Definition of Elasticity of Demand)
  3. माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Influencing the Elasticity of Demand)
  4. माँग की लोच के विचार का महत्व (Significance of the Concept of Elasticity of Demand)
  5. सीमान्त आगम, औसत आगम तथा माँग की लोच में सम्बन्ध (Relationship between Marginal Revenue, Average Revenue and Elasticity of Demand)


Essay # 1. प्रारम्भिक (Introduction to the Elasticity of Demand):

किसी वस्तु की माँग उस वस्तु की कीमत के साथ परिवर्तित होती रहती है किन्तु सभी स्थितियों में माँग के परिवर्तन की मात्रा एकसमान नहीं होती ।

माँग का नियम यह नहीं बताता कि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँग में कितना परिवर्तन होगा क्योंकि माँग का नियम केवल एक गुणात्मक कथन (Qualitative Statement) है जिसके कारण यह कीमत परिवर्तन के कारण केवल माँग के परिवर्तन की दिशा को बताता है ।

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माँग की लोच अर्थशास्त्रियों द्वारा माँग के नियम को परिमाणात्मक कथन (Quantitative Statement) के रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है । दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि माँग की लोच किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के सापेक्ष उसकी माँग में परिवर्तित हुई मात्रा को बताती है जबकि अन्य बातें समान रहती हैं ।

लोच का अभिप्राय है वस्तु में घटने या बढ़ने की प्रवृत्ति । उदाहरण के लिए, रबड़ लोचदार होती है क्योंकि दबाव पड़ने पर बढ़ जाती है और दबाव हटा लेने पर पुनः अपनी स्थिति में वापस आ जाती है । लोच दो बातों पर निर्भर करती है – वस्तु के स्वभाव पर और उस पर पड़ने वाले दबाव पर ।

कुछ वस्तुओं का स्वभाव ऐसा होता है कि उन पर कम दबाव डालने पर भी अधिक परिवर्तन उत्पन्न होता है, ऐसी वस्तुओं को अधिक लचीली वस्तु कहा जाता है ।

इसके विपरीत कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिसमें अधिक दबाव डालने पर कम परिवर्तन होता है, ऐसी वस्तुओं को बेलोच वस्तु कहा जाता है । इसी विचारधारा के साथ कीमत की माँग पर होने वाली प्रतिक्रिया के सन्दर्भ में माँग की लोच की व्याख्या की गयी है ।

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Essay # 2. माँग की लोच की परिभाषा (Definition of Elasticity of Demand):

माँग की लोच अथवा माँग की कीमत लोच का अभिप्राय कीमत के सूक्ष्म परिवर्तन के कारण माँग की मात्रा में उत्पन्न होने वाले परिवर्तन की माप से है ।

मार्शल के अनुसार, ”माँग की लोच का बाजार में कम या अधिक होना इस बात पर निर्भर करता है कि वस्तु की कीमत में एक निश्चित मात्रा में परिवर्तन होने पर उसकी माँग में सापेक्ष रूप से अधिक या कम अनुपात में परिवर्तन होता है ।”

सैम्युलसन के शब्दों में, माँग की लोच का विचार ”कीमत के परिवर्तन के फलस्वरूप माँग की मात्रा में परिवर्तन के अंश अर्थात् माँग में प्रतिक्रियात्मकता के अंश को बताता है ।”

चित्र 1 में DD माँग वक्र है । यह माँग वक्र यह बताता है कि अन्य तत्वों के स्थिर रहने पर माँग एवं वस्तु की कीमत में प्रतिलोम सम्बन्ध होता है । चित्र में बिन्दु P पर उपभोक्ता OC कीमत पर OA वस्तु मात्रा का उपभोग कर रहा है । कीमत में ΔP कमी होने पर उपभोक्ता वस्तु की उपभोग मात्रा ΔQ बढ़ा देता है । दूसरे शब्दों में, कीमत की कमी के कारण उपभोक्ता की माँग में वृद्धि हो जाती है ।

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चित्रानुसार,

जहाँ,

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ΔQ = माँग में परिवर्तन

ΔP = कीमत में परिवर्तन

Q = अरम्भिक माँग

P = अरम्भिक कीमत

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किन्तु माँग की लोच ऋणात्मक (Negative) होती है क्योंकि वस्तु की माँग और उसकी कीमत में विपरीत सम्बन्ध होता है । अतः

  


Essay # 3. माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Influencing the Elasticity of Demand):

माँग की लोच निम्नलिखित तत्वों से प्रभावित होती है:

A. वस्तु की प्रकृति (Nature of the Goods):

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प्रकृति के आधार पर वस्तुओं को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) आवश्यक वस्तुओं (Necessaries) के सम्बन्ध में माँग की लोच बेलोचदार होती है क्योंकि इन आवश्यक वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन (वृद्धि अथवा कमी) होने पर इन वस्तुओं की उपभोग की माँग अपरिवर्तित रहती है । नमक, गेहूँ, इत्यादि आवश्यक वस्तुएँ इसी श्रेणी में आती हैं ।

(ii) आरामदायक वस्तुओं (Comforts) के लिए माँग की लोच साधारण लोचदार (Moderately Elastic) ऐसी वस्तुओं के उपभोग से उपभोक्ता की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है किन्तु इनका अभाव उपभोक्ता की कार्य-शक्ति में विशेष कमी नहीं करता ।

(iii) विलासिता की वस्तुओं (Luxuries) के लिए माँग की लोच अत्यधिक लोचदार होती है । ऐसी वस्तुओं की कीमत घट जाने पर उनकी माँग में बहुत वृद्धि होती है किन्तु कीमत बढ़ जाने पर माँग में विशेष कमी नहीं होती ।

B. स्थानापन्न वस्तुएँ (Substitutes):

यदि किसी वस्तु के अन्य स्थानापन्न उपलब्ध हैं तब ऐसी वस्तु की माँग की लोच अत्यधिक लोचदार होगी क्योंकि जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाती है, तो उसके स्थान पर अन्य स्थानापन्न वस्तुओं का प्रयोग होने लगता है ।

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इसी प्रकार वस्तु की कीमत में कमी होने पर अन्य स्थानापन्न वस्तुओं के स्थान पर इसका प्रयोग होने लगता है । चाय, कॉफी, गुड़, चीनी आदि ऐसी ही स्थानापन्न वस्तुएँ हैं । बाजार में अनेक टूथपेस्ट एवं साबुनों की उपलब्धि भी स्थानापन्न वस्तुओं की श्रेणी में आती है ।

C. वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग (Alternative Uses):

यदि किसी वस्तु का केवल एक प्रयोग ही सम्भव हो तो उसकी माँग बेलोच होगी और यदि उसके कई प्रयोग सम्भव हों, तो माँग लोचदार होगी । उदाहरण के लिए, कोयला रेलगाड़ियों, कारखानों, वर्कशॉपों, घरों में ईंधन के रूप में एवं अनेक वैकल्पिक प्रयोगों में प्रयुक्त होता है ।

रेलवे के लिए कोयले की माँग बेलोच है किन्तु घरों में कोयले की माँग अधिक लोचदार होती है क्योंकि कोयले की कीमत में बहुत अधिक वृद्धि हो जाने पर घरों में ईंधन के रूप में इसकी माँग कम हो जायेगी तथा उपभोक्ता कोयले के स्थान पर लकड़ी, मिट्टी का तेल, गैस आदि का प्रयोग करने लगेंगे ।

D. उपभोग स्थगन (Postponement of Consumption):

यदि किसी वस्तु का उपभोग कुछ समय के लिए स्थगित किया जा सकता है, तो उसकी माँग लोचदार होती है । उदाहरण के लिए, यदि किसी उपभोक्ता के पास दो ऊनी कपड़े पहले से ही हैं । इस वर्ष ऊनी कपड़े की कीमत बढ़ जाती है, तो उपभोक्ता उस वर्ष तीसरे ऊनी कपड़े की खरीद को स्थगित कर सकता है । ऐसी दशा में उस वर्ष के लिए ऊनी कपड़ों की माँग की लोच अधिक लोचदार होगी ।

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E. व्यय की राशि (Expenditure Amount):

किसी वस्तु की माँग की लोच इस बात पर निर्भर करती है कि उपभोक्ता उस वस्तु पर अपनी आय का कितना प्रतिशत भाग व्यय करता है । जिन वस्तुओं पर व्यय किया जाने वाला प्रतिशत बहुत अधिक होता है उनकी माँग अधिक लोचदार होती है तथा जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता अपनी आय का अति सूक्ष्म भाग व्यय करता है उनकी माँग प्रायः बेलोच होती है ।

यही कारण है कि टेलीविजन, रेडियो, साईकिल, स्कूटर की माँग अत्यधिक लोचदार होती है जबकि नमक, गेहूँ, दियासलाई आदि की माँग बेलोचदार होती है ।

F. आय (Income):

आय स्तर भी माँग की लोच को प्रभावित करता है । धनी व्यक्ति के लिए माँग की लोच प्रायः बेलोचदार होती है, क्योंकि वस्तुओं की कीमत पर परिवर्तन धनी व्यक्ति के लिए कोई विशेष महत्व नहीं रखता जबकि गरीब व्यक्ति के लिए वस्तु की माँग अत्यधिक लोचदार होती है क्योंकि उनकी माँग कीमतों में परिवर्तन से अत्यधिक प्रभावित होती है ।

G. धन का वितरण (Wealth Distribution):

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टॉजिग (Taussig) के अनुसार, यदि समाज में धन का असमान वितरण है तो माँग की लोच बेलोच हो जाती है किन्तु यदि धन का वितरण समान है तो माँग की लोच अत्यधिक लोचदार हो जाती है ।

धन के असमान वितरण के कारण गरीब वर्ग और अधिक गरीब तथा अमीर वर्ग और अधिक अमीर बन जाता है जिसके कारण गरीब वर्ग की माँग की लोच और अधिक बेलोच हो जाती है । यदि धन का समान वितरण हो जाता है, तब कीमत परिवर्तन का सब लोगों पर समान असर पड़ता है और माँग की लोच लोचदार हो जाती है ।

H. संयुक्त माँग अथवा वस्तुओं को पूरकता (Joint Demand or Complementarity of Goods):

कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनकी माँग के साथ दूसरी वस्तु की माँग की जाती है । ऐसी वस्तुएँ पूरक कहलाती हैं । उदाहरण के लिए, दियासलाई-सिगरेट, स्कूटर-पेट्रोल, जूता-मोजा आदि ।

पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर स्कूटर की माँग में नगण्य कमी आती है । स्कूटर को चलाने के लिए पेट्रोल आवश्यक है । इस प्रकार पेट्रोल की माँग बेलोचदार माँग हो जाती है ।

I. स्वभाव एवं आदत (Nature and Habit):

यदि उपभोक्ता किसी वस्तु विशेष का अभ्यस्त हो चुका है तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर भी वह उसका उपभोग कम नहीं करेगा ऐसी दशा में वस्तु की माँग बेलोच हो जाती है ।


Essay # 4. माँग की लोच के विचार का महत्व (Significance of the Concept of Elasticity of Demand):

माँग की लोच की धारणा का अर्थशास्त्र में केवल सैद्धान्तिक (Theoretical) महत्व ही नहीं है बल्कि व्यावहारिक दृष्टि से यह बहुत उपयोगी है ।

अर्थशास्त्र की विभिन्न शाखाओं में माँग की लोच का महत्व निम्नलिखित है:

1. मूल्य सिद्धान्त में (In the Theory of Value):

मार्शल के अनुसार, वस्तु की कीमत उसकी माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों पर निर्भर करती है । आधुनिक अर्थशास्त्र में माँग पक्ष को आगम वक्र द्वारा तथा पूर्ति पक्ष को लागत वक्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है । लागत वक्र समय तत्व पर निर्भर करते हैं जबकि आगम वक्र माँग की लोच पर निर्भर करते हैं ।

एक फर्म सदैव सन्तुलन के बिन्दु पर तब होती है जब सीमान्त आगम और सीमान्त लागत परस्पर बराबर हो जाएँ (MR = MC) ।

एकाधिकारी बाजार में सीमान्त आगम माँग की लोच पर निर्भर करता है क्योंकि एकाधिकारी बाजार में,

2. एकाधिकारी के लिए उपयोगी (Useful for the Monopolist):

एकाधिकारी अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए कीमत-विभेद (Price Discrimination) का सहारा लेता है जिसमें वह विभिन्न बाजारों में उपभोक्ताओं से एक ही वस्तु की भिन्न-भिन्न कीमत वसूल करता है ।

किस बाजार में एकाधिकारी कम कीमत लेगा तथा किस बाजार में अधिक कीमत लेगा इसका फैसला एकाधिकारी विभिन्न बाजारों की माँग की लोच के आधार पर करता है । ऊँची लोच वाले बाजार में कम कीमत पर तथा कम लोच वाले बाजार में एकाधिकारी ऊँची कीमत पर एक ही वस्तु को बेचता है ।

3. वितरण सिद्धान्त में (In the Theory of Distribution):

उत्पादन के साधनों का पुरस्कार भी निर्धारित करने में माँग की लोच की धारणा उपयोगी सिद्ध होती है । उत्पादन साधनों की माँग प्रत्यक्ष न होकर व्युत्पन्न माँग (Derived Demand) होती है ।

उत्पादन के उन साधनों को उत्पादक अधिक पुरस्कार देता है जिनकी माँग उसके लिए बेलोच होती है । यदि किसी मिल के श्रमिकों की माँग उत्पादक के लिए बेलोच होती है यदि वे श्रमिक अधिक मजदूरी के लिए हड़ताल करें तो वे अधिक मजदूरी लेने में सफल हो जायेंगे ।

4. सरकार के लिए उपयोगी (Useful for the Government):

एक कुशल वित्तमन्त्री का यह प्रयास होता है कि सरकार को अधिक-से-अधिक आय प्राप्त हो और अर्थव्यवस्था में धन और आय की वितरण असमानताएँ यथा सम्भव दूर हों । अतः कर लगाते समय वित्तमन्त्री विभिन्न वस्तुओं की माँग लोच को ध्यान में रखता है ।

जिन वस्तुओं की माँग बेलोच होती है उन पर सरकार कर लगाकर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकती है क्योंकि कर के कारण वस्तुओं की कीमत वृद्धि का वस्तु की माँग पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है । इसके विपरीत लोचदार माँग वाली वस्तुओं पर कर लगाकर अधिक आय अर्जित नहीं की जा सकती है क्योंकि कर के कारण वस्तु की कीमत वृद्धि माँग को बहुत कम कर देगी ।

माँग की लोच की सहायता सरकार कर-भार को जानने के लिए भी लेती है । वस्तु की माँग बेलोच होने का अर्थ यह नहीं है कि सरकार उस पर अधिक कर लगा दे । सरकार का दृष्टिकोण यह होता है कि समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा कर-भार न्यायोचित ढंग से वहन किया जाय ।

यदि वस्तु बेलोचदार माँग वाली है तो उत्पादक कर के भार का अधिकांश भाग उपभोक्ताओं पर स्थानान्तरित कर देंगे । इसके विपरीत, वस्तु की माँग लोचदार होने पर कर-भार का अधिकांश भाग उत्पादकों को स्वयं वहन करना पड़ेगा । इस प्रकार कर-भार एवं कर-विवर्तन की व्याख्या भी माँग की लोच की सहायता से की जाती है ।

माँग की लोच की धारणा के आधार पर ही यह निश्चित हो पाता है कि लोक-कल्याण की दृष्टि से सरकार किन उद्योगों को सार्वजनिक सेवाएँ घोषित करे और उनका नियन्त्रण और स्वामित्व अपने हाथ में ले ले । सरकार जनता के हित में एकाधिकारी प्रवृत्ति को समाप्त कर देती है ।

जल, विद्युत, स्वास्थ्य, डाकतार, यातायात आदि सेवाएँ सार्वजनिक उपयोगी सेवाएँ कहलाती हैं । सरकार आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी माँग की लोच को ध्यान में रखती है ।

5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade Theory):

दो देशों के बीच व्यापार की शर्तें (Terms of Trade) उनके आयातों एवं निर्यातों की माँग तथा पूर्ति की लोच पर निर्भर करती है । यदि देश के निर्यातों की माँग बेलोचदार है तो विदेशों से ऊँची कीमत पर भी आयात करना पड़ेगा । इस प्रकार माँग की लोच का व्यापार की शर्तों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है ।

6. यातायात भाड़े की दर (Fare and Freight):

यातायात में भाड़े की दर निश्चित करते समय कम्पनी यह देखती है कि वस्तु या सेवा की यातायात की माँग लोचदार है अथवा बेलोच । ऐसी वस्तुएँ जिन्हें ट्रक द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता, रेलवे उसके भाड़े की दर निश्चित करेगी क्योंकि उस वस्तु के लिए रेलवे सेवा की माँग बेलोच होगी ।  


Essay # 5. सीमान्त आगम, औसत आगम तथा माँग की लोच में सम्बन्ध (Relationship between Marginal Revenue, Average Revenue and Elasticity of Demand):

माँग की लोच, सीमान्त आगम तथा औसत आगम में बड़ा ही घनिष्ठ सम्बन्ध है ।

श्रीमती जॉन राबिन्सन ने इस सम्बन्ध को निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया है:

इसी समीकरण को हल करने पर हमको सीमान्त आगम तथा औसत आगम के भी निम्नलिखित सम्बन्ध प्राप्त होते हैं:

इसका आशय यह है कि यदि हमें माँग की लोच मालूम है तो विभिन्न कीमतों पर सीमान्त आगम अथवा किसी औसत आगम के अनुरूप सीमान्त आगम ज्ञात कर सकते हैं ।

उदाहरणार्थ, यदि किसी वस्तु की माँग बहुत अधिक लोचदार है तो कीमत में कम प्रतिशत का परिवर्तन माँग की मात्रा में अधिक प्रतिशत में परिवर्तन लाता है । इस दशा में सीमान्त आगम, औसत आगम के बहुत निकट होगी ।

माँग के विभिन्न लोच के अनुसार औसत आगम तथा सीमान्त आगम के सम्बन्ध को नीचे सारणी में दर्शाया गया है:

सारणी : माँग की लोच तथा आगम में सम्बन्ध

चित्र 20 में माँग की लोच के अनुसार औसत आगम तथा सीमान्त आगम के सम्बन्ध को प्रदर्शित किया गया है ।

(i) माँग वक्र DD1 के A बिन्दु पर माँग की लोच इकाई के बराबर है । जब माँग की लोच इकाई के बराबर होती है तो सीमान्त आगम शून्य होती है ।

सूत्र के अनुसार:

अतः A बिन्दु पर

चित्र 20 को देखने से यह भी स्पष्ट होता है कि A बिन्दु पर माँग की लोच इकाई के बराबर है तो औसत आगम AP के बराबर है, जबकि सीमान्त आगम शून्य है ।

(ii) X-अक्ष पर इसी प्रकार के अन्य लम्ब खींचकर विभिन्न उत्पादन के स्तरों पर औसत आगम तथा सीमान्त आगम मालूम किया जा सकता है ।

इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि:

(a) जब माँग की लोच एक से अधिक हो जैसा A बिन्दु के ऊपर है तो सीमान्त आय धनात्मक होती है ।

(b) जब माँग की लोच एक से कम होती है जैसा कि A के नीचे की ओर है तो सीमान्त आय ऋणात्मक होती है ।

(c) जब माँग का लोच अनन्त होती है जैसा कि D बिन्दु पर है तो सीमान्त आगम औसत आगम के बराबर होती है ।

(d) जब माँग की लोच शून्य होती है जैसा कि D1 बिन्दु पर है तो सीमान्त आगम और औसत आगम का अन्तर सबसे बड़ा होता है ।