Here is an essay on ‘Rent’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay # 1. लगान का अभिप्राय (Meaning of Rent):

आय का वह भाग जो भूमिपतियों को उनकी भूमि के प्रयोग के बदले दिया जाता है, लगान कहलाता है ।

डेविड रिकार्डो के अनुसार, ”लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भू-स्वामी को भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाता है ।”

मार्शल के अनुसा, ”भूमि तथा प्रकृति के अन्य निःशुल्क उपहारों के स्वामित्व के फलस्वरूप जो आय प्राप्त होती है वह लगान होती है ।”

ADVERTISEMENTS:

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान केवल भूमि को ही प्राप्त होता है । आधुनिक अर्थशास्त्री इस विचार से सहमत नहीं हैं ।

आधुनिक अर्थशास्त्री श्रीमती जॉन रॉबिन्सन (Mrs. Joan Robinson) के अनुसार, ”लगान के विचार का सार वह आधिक्य है जो एक साधन को न्यूनतम आय के अतिरिक्त प्राप्त होता है जिसके कारण वह साधन अपना कार्य करने के लिए प्रेरित होता है ।”

इस प्रकार, आधुनिक अर्थशास्त्रियों के लिए लगान एक सामान्य पुरस्कार है जो किसी भी उत्पत्ति के साधन को दिया जा सकता है । आधुनिक अर्थशास्त्रियों के विचार में प्रत्येक साधन लगान प्राप्त कर सकता है यदि उसमें भूमि की भाँति ‘सीमितता का गुण’ उपस्थित हो जाय ।

Essay # 2. लगान के प्रकार (Types of Rent):

ADVERTISEMENTS:

1. कुल लगान (Total Rent):

साधारण भाषा में लगान का अर्थ कुल लगान ही होता है, आर्थिक लगान नहीं होता । भूमि का प्रयोग उसी रूप में नहीं किया जाता जिस रूप में वह प्रकृति से प्राप्त होती है बल्कि इस पर पूँजी व्यय करके इसका सुधार किया जाता है । भू-स्वामी जब भूमि को काश्तकार को प्रयोग के लिए देता है तो वह जोखिम उठाता है और कुछ स्थितियों में प्रबन्ध आदि भी करता है ।

इस प्रकार भूस्वामी को आर्थिक लगान ही प्राप्त नहीं होता बल्कि उसके द्वारा लगायी पूँजी पर ब्याज, भूमि के प्रबन्ध के लिए मजदूरी और जोखिम का पुरस्कार भी मिलता है ।

कुल लगान में सम्मिलित किये जाने वाले घटक हैं:

ADVERTISEMENTS:

(i) आर्थिक लगान

(ii) भूमि सुधार में लगाई गई पूँजी पर ब्याज

(iii) भूमि प्रबन्ध का व्यय

(iv) भू-स्वामी द्वारा उठाये गये जोखिम का पुरस्कार

2. आर्थिक लगान (Economic Rent):

केवल भूमि के प्रयोग के बदले दिया जाने वाला पुरस्कार आर्थिक लगान कहलाता है । रिकार्डो के अनुसार आर्थिक लगान एक शुद्ध लगान है जो श्रेष्ठ भूमि और सीमान्त भूमि की उपज के बराबर होता है । आधुनिक अर्थशास्त्री रिकार्डो के इस विचार से सहमत नहीं थे । उनके अनुसार, ”आर्थिक लगान एक साधन की अवसर लागत के ऊपर बचत है ।”

3. ठेके के लगान (Contract Rent):

यह लगान भू-स्वामी एवं काश्तकार के बीच आपसी समझौते द्वारा निश्चित होता है । कुल लगान के अलावा काश्तकारों एवं भू-स्वामियों की सौदा करने की शक्ति भी ठेका लगान को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण योगदान करती है । पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में ठेका लगान एवं आर्थिक लगान एकसमान होते हैं । जब ठेका लगान आर्थिक लगान से अधिक हो तो इसे अत्यधिक लगान (Rack Rent) कहा जाता है ।

ठेके का लगान भूमि की माँग एवं पूर्ति पर निर्भर करता है । यदि भूमि की माँग पूर्ति की तुलना में अधिक है तब काश्तकारों में भूमि की प्राप्ति के लिए अधिक प्रतियोगिता होगी जिसके कारण आर्थिक लगान से ठेका का लगान ऊँचा होगा । इसके विपरीत, भूमि की पूर्ति माँग की तुलना में अधिक होने पर भू-स्वामियों में भूमि को काश्तकारों को देने के लिए उपयोगिता होगी जिसके कारण ठेके का लगान आर्थिक लगान से कम हो जायेगा ।

ADVERTISEMENTS:

4. स्थिति लगान (Situation Rent):

भूमि की स्थिति के अन्तर के कारण जो लगान उत्पन्न होता है उसे स्थिति लगान कहते हैं । उदाहरण के लिए, विकसित एवं सुविधा-सम्पन्न क्षेत्र में मकान का किराया शहर से दूर स्थित अविकसित क्षेत्र की तुलना में अधिक होगा ।

5. दुर्लभता अथवा सीमितता लगान (Scarcity Rent):

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान साधन की दुर्लभता के कारण उत्पन्न होता है । जब किसी साधन की पूर्ति उसकी माँग के सापेक्ष दुर्लभ हो तो लगान की समस्या उत्पन्न होती है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उत्पादन के प्रत्येक साधन को लगान प्राप्त हो सकता है, यदि उसकी पूर्ति पूर्णतः लोचदार न हो ।

ADVERTISEMENTS:

Essay # 3. लगान उत्पत्र होने का कारण (How Economic Rent Arises):

आधुनिक अर्थशास्त्री साधन की सापेक्षिक सीमितता को लगान उत्पन्न होने का कारण मानते हैं । दूसरे शब्दों में, जब साधन की पूर्ति माँग की तुलना में कम होती है तब लगान उत्पन्न होता है । इस प्रकार साधन की पूर्ति लोच ही लगान का निर्धारण कर सकती है ।

उत्पत्ति के साधनों की पूर्ति से सम्बन्धित तीन स्थितियाँ हो सकती हैं:

a. पूर्णतः लोचदार पूर्ति (Perfectly Elastic Supply) – अथवा अविशिष्ट साधन (Perfectly Non-Specific Factors):

ADVERTISEMENTS:

किसी साधन की माँग में परिवर्तन होने पर यदि उसकी पूर्ति में परिवर्तन हो जाए तब वह उत्पत्ति साधन सीमित नहीं होगा । इसके फलस्वरूप साधन की कीमत में भी परिवर्तन नहीं होगा । दूसरे शब्दों में, पूर्णतः लोचदार पूर्ति वाला साधन पूर्णतया अविशिष्ट होता है ।

ऐसी स्थिति में साधन की वास्तविक आय और हस्तान्तरण आय बराबर होगी अर्थात् साधन को कोई लगान प्राप्त नहीं होगा । चित्र 3 में पूर्णतया अविशिष्ट साधन की पूर्णतया लोचदार पूर्ति को दिखाया गया है ।

पूर्ति वक्र क्षैतिज रेखा के रूप में SS1 है । ऐसे साधन को कोई लगान प्राप्त नहीं होता है क्योंकि साधन की कुल कीमत OSEQ के बराबर है तथा OSEQ ही हस्तान्तरण आय है । अतः लगान = वास्तविक आय – हस्तान्तरण आय, सूत्रानुसार, लगान शून्य के बराबर होगा क्योंकि ऐसी परिस्थिति में साधन को हस्तान्तरण आय के ऊपर बचत प्राप्त नहीं होती ।

b. पूर्णतः बेलोचदार पूर्ति (Perfectly Inelastic Supply) – अथवा पूर्ण विशिष्ट साधन (Perfectly Specific Factor):

यदि साधन की माँग में परिवर्तन होने पर (कमी होने अथवा वृद्धि होने पर) साधन की पूर्ति स्थिर रहती है तब ऐसी दशा में पूर्ण बेलोच पूर्ति वाला साधन पूर्ण विशिष्ट हो जाता है । ऐसी स्थिति में हस्तान्तरण आय शून्य (Zero) होगी तथा साधन की वास्तविक आय ही लगान होगी ।

ADVERTISEMENTS:

ऐसी पूर्ण बेलोच पूर्ति वाले साधन की माँग बढ़ने पर उस साधन की वास्तविक आय बढ़ जाती है अर्थात् लगान की मात्रा बढ़ जाती है । दूसरे शब्दों में, पूर्ण बेलोच पूर्ति वाले साधन की समस्त आय लगान होती है ।

चित्र 4 में इस स्थिति को दिखाया गया है । SS रेखा साधन की पूर्णतः बेलोच पूर्ति को बतलाती है । DD माँग रेखा को प्रदर्शित करती है । साधन की प्रति इकाई कीमत OP = ES होगी तथा सम्पूर्ण वास्तविक आय OPSE के बराबर होगी ।

इस स्थिति में साधन की हस्तान्तरण आय शून्य होगी क्योंकि साधन की गतिशीलता पूर्णतः अनुपस्थित होने के कारण साधन पूर्ण विशिष्ट बन जाता है । ऐसी दशा में, लगान = वास्तविक आय – हस्तान्तरण आय, सूरानुसार सम्पूर्ण वास्तविक आय OPSE लगान के बराबर होगी । दूसरे शब्दों में, पूर्ण बेलोच पूर्ति वाले साधन की समस्त आय लगान होती है ।

c. पूर्ण लोच से कम पूर्ति (Less than Perfectly Elastic Supply) अथवा आंशिक विशिष्ट तथा आंशिक अविशिष्ट साधन (Partial Specific & Partial Non-Specific Factor):

ADVERTISEMENTS:

जब किसी साधन की माँग बढ़ने पर उसकी पूर्ति उस अनुपात में न बढ़कर कम अनुपात में बढ़ती है तब ऐसी स्थिति में साधन की पूर्ति की लोच पूर्ण लोच से कम होती हैतथा वह साधन आंशिक विशिष्ट तथा आंशिक अविशिष्ट बन जाता है । ऐसी स्थिति में साधन की वास्तविक आय उसकी हस्तान्तरण आय से अधिक होगी तथा वास्तविक आय एवं हस्तान्तरण आय का अन्तर ही लगान होगा ।

साधन जिस सीमा तक दूसरे प्रयोग में माँगा जाता है उस सीमा तक वह अविशिष्ट (Non-specific) है तथा शेष अंश में वह विशिष्ट हो जाता है । साधन की यही विशिष्टता लगान उपस्थित करती है ।

चित्र 5 में पूर्ण लोच से कम पूर्ति वाले साधन के लिए लगान की व्याख्या की गयी है । OS साधन की वह न्यूनतम कीमत है जो साधन को क्रियाशील बनाने के लिए अवश्य मिलनी चाहिए । OS से कम कीमत पर साधन क्रियाशील नहीं होगा । चित्र से स्पष्ट है कि क्रमशः OQ1 , OQ2 , OQ3 तथा OQ मात्रा को प्रयोग में लाने के लिए साधन को क्रमशः OP1 , OP2 , OP3 तथा OP कीमत अवश्य मिलनी चाहिए ।

इस प्रकार साधन पूर्ति रेखा SS1 के विभिन्न बिन्दु K, R, T तथा E साधन की विभिन्न मात्राओं (क्रमशः OQ1 , OQ2 , OQ3 तथा OQ) के लिए उन न्यूनतम कीमतों को बताते हैं जिन पर उस साधन की तत्सम्बन्धित मात्राएँ (Corresponding Quantities) क्रियाशील होती हैं । चित्र में छायादार भाग लगान को बताता है ।

उदाहरण के लिए,

ADVERTISEMENTS:

साधन की OQ मात्रा के लिए,

हस्तान्तरण आय = OSEQ क्षेत्र

वास्तविक आय = OPEQ क्षेत्र

अतः, लगान = क्षेत्र OPEQ – क्षेत्र OSEQ = क्षेत्र SPE

इस प्रकार उत्पत्ति का कोई भी साधन लगान प्राप्त कर सकता है यदि उस साधन की वास्तविक आय उसकी हस्तान्तरण आय से अधिक हो । दूसरे शब्दों में, लगान का आधुनिक सिद्धान्त एक वास्तविक सिद्धान्त है जो उत्पत्ति के प्रत्येक साधन पर क्रियान्वित होता है ।

संक्षेप में, लगान के आधुनिक सिद्धान्त को निम्नलिखित बिन्दुओं पर स्पष्ट किया जा सकता है:

ADVERTISEMENTS:

(1) जब उत्पत्ति के साधन की पूर्ति पूर्ण बेलोच होती है तब उसकी सम्पूर्ण आय आर्थिक लगान होती है ।

(2) जब उत्पत्ति के साधन की पूर्ति पूर्ण लोचदार होती है तब उसकी सम्पूर्ण आय हस्तान्तरण आय के बराबर हो जाती है । इस प्रकार इस दशा में कोई आर्थिक लगान उत्पन्न नहीं होता ।

(3) जब उत्पत्ति के साधन की पूर्ति पूर्ण लोचदार से कम हो तब उसकी आय में आर्थिक लगान सम्मिलित रहता है । पूर्ति में बेलोच का अंश जितना अधिक होगा उतना ही आर्थिक लगान अधिक होगा । दूसरे शब्दों में, साधन में विशिष्टता का गुण जितना अधिक होगा आर्थिक लगान भी उतना ही अधिक होगा ।

(4) आर्थिक लगान का विचार केवल भूमि से ही सम्बन्धित न होकर उत्पत्ति के प्रत्येक साधन से सम्बन्धित है । दूसरे शब्दों में, लगान का आधुनिक सिद्धान्त एक सामान्य सिद्धान्त है ।