Here is an essay on ‘Interest’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Interest’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay # 1. ब्याज का अभिप्राय (Meaning of Interest):

अर्थशास्त्र में मौद्रिक पूँजी के उपयोग के लिए दिया जाने वाला भुगतान ब्याज है । ब्याज राष्ट्रीय आय का वह भाग है जो पूँजी की सेवाओं के बदले पूँजीपति को दिया जाता है ।

ब्याज की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं:

(1) मार्शल के अनुसार, ”ब्याज किसी बाजार में पूँजी के प्रयोग की कीमत है ।”

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(2) मेयर्स के अनुसार, ”ब्याज वह मूल्य है जो उधार देने योग्य कोष के प्रयोग के लिए दिया जाता है ।”

(3) विकसल के अनुसार, ”ब्याज उस भुगतान को कहते हैं जो पूँजी उधार लेने वाला पूँजी की उत्पादन शक्ति के कारण पूँजीपति को उसे त्यागने के पुरस्कार स्वरूप मिलता है ।”

(4) कीन्स के अनुसार, ”ब्याज निश्चित अवधि के लिए तरलता के परित्याग का पुरस्कार है ।”

उपर्युक्त सभी परिभाषाओं से स्पष्ट है कि ब्याज मौद्रिक पूँजी के उपयोग का मौद्रिक भुगतान है ।

Essay # 2. ब्याज के प्रकार (Kinds of Interest):

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ब्याज प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है – कुल ब्याज और शुद्ध ब्याज । कुल ब्याज वह ब्याज है जो वास्तविक जीवन में ऋणदाता द्वारा वसूल किया जाता है । शुद्ध ब्याज (Net Interest) उधार दी गयी राशि के प्रयोग के बदले पुरस्कार है । कुल ब्याज (Total Interest) शुद्ध ब्याज से अधिक होता है । इसमें शुद्ध ब्याज के अलावा जोखिम, असुविधा, प्रबन्ध तथा अन्य भुगतान भी शामिल होते हैं ।

कुल ब्याज (Total Interest) में निम्न तत्व शामिल होते हैं:

i. शुद्ध ब्याज (Net Interest):

केवल मुद्रा की सेवाओं अथवा ऋण योग्य कोष की सेवाओं के उपयोग के लिए दिया गया पुरस्कार शुद्ध ब्याज कहलाता है । प्रो. एनातोल मुराद के अनुसार, ”ऋण योग्य कोष के उपयोग के लिए दी जाने वाली कीमत ब्याज कहलाती है । ऋण योग्य कोष को उधार देने के बाद जो आय प्राप्त होती है उसे व्याज कहा जाता है ।”

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प्रो. चैपमैन के अनुसार, ”पूँजी के ऋण के लिए शुद्ध ब्याज भुगतान है जबकि कोई जोखिम न हो, बचत की असुविधा छोड़कर कोई असुविधा न हो और उधार देने वाले के लिए कोई काम न हो ।”

ii. जोखिम का पुरस्कार (Reward of Risk):

जब कोई ऋणदाता उधार देता है तो वह जोखिम उठाता है ।

जोखिम भी दो प्रकार के होते हैं:

(a) व्यावसायिक जोखिम

(b) व्यक्तिगत जोखिम ।

कुछ व्यवसाय अधिक जोखिम वाले होते हैं और कुछ व्यवसाय कम जोखिम वाले । उदाहरण के लिए, कृषि भारत में मानसून का जुआ है । इसी कारण किसान को उधार देते समय व्यावसायिक जोखिम अधिक रहता है । किसान ईमानदार हो तब भी फसल खराब होने पर ऋण वापस करने की स्थिति में नहीं होता । ऐसे व्यवसायों में जब उधार दिया जाता है तो ब्याज दर अधिक ली जाती है ।

जहाँ तक व्यक्तिगत जोखिम की बात है तो व्यक्ति के चरित्र के साथ जोखिम का सम्बन्ध होता है । कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो उधार वापस देना अपना धर्म नहीं समझते जबकि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो किसी का उधार रुपया अपने पास रख ही नहीं सकते । इस प्रकार झूठे, बेईमान और लापरवाह व्यक्ति को उधार देने में जोखिम अधिक रहता है । ऐसे व्यक्ति को उधार देते समय अधिक ब्याज लिया जाता है और सामान्य रूप से उधार नहीं दिया जाता ।

iii. असुविधा का भुगतान (Payment for Inconvenience):

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उधार देने के कारण ऋणदाता को असुविधा सहनी पड़ती है । जितनी अवधि के लिए रुपया उधार दिया जाता है ऋणदाता को तरलता का त्याग करना पड़ता है और जरूरत के समय पैसा नहीं मिल पाता चाहे आपातकालीन स्थिति ही क्यों न हो । ऋणदाता को रुपया वापस आने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है । कीमतें बढ़ जायें तो कम क्रय-शक्ति वापस लेनी पड़ती है ।

बीच में आवश्यकता पड़ जाए तो निजी आवश्यकताओं के उपभोग से वंचित रहना पड़ता है – ये ही वे असुविधाएँ हैं जिनका सामना ऋणदाता को करना पड़ता है । इस असुविधा के बदले वह ऋण लेने वाले व्यक्ति से शुद्ध ब्याज से कुछ अधिक रकम वसूल करता है जिसे हम असुविधा का भुगतान कह सकते हैं ।

iv. प्रबन्ध की लागत (Cost of Management):

प्रत्येक ऋणदाता को ऋण के प्रबन्ध पर कुछ न कुछ व्यय अवश्य करना पड़ता है । ऋणी को दी गयी राशि और समय तथा ब्याज आदि की गणना का पूरा लेख-जोखा तैयार करना पड़ता है । इसके लिए खाते व मुनीम आदि भी रखने पड़ जाते हैं ।

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ऋण वसूल करने के लिए तकादे के लिए आना-जाना भी पड़ता है और यदि ऋणी ऋण वापस न करे तो मुकदमे का खर्चा भी वहन करना पड़ता है । इन सब खर्चों को ऋणदाता ऋणी से ही वसूल करता है । इस प्रकार ब्याज के एक अंश के रूप में प्रबन्ध की लागत भी शामिल है ।

इस प्रकार,

कुल ब्याज = शुद्ध ब्याज + जोखिम का पुरस्कार + असुविधा का भुगतान + प्रबन्ध की लागत

Essay # 3. ब्याज दर में भिन्नता के कारण (Causes of Difference in the Rate of Interest):

ब्याज की दरों में प्रायः भिन्नता देखने को मिलती है । भिन्न-भिन्न व्यक्तियों, उद्योगों, स्थानों तथा समय पर ब्याज की दरों में भिन्नता पाई जाती है ।

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ब्याज की दरों में भिन्नता के कारण निम्न हैं:

(i) जोखिम की भित्रता (Difference in Risk):

व्यक्ति तथा व्यवसाय के आधार पर जोखिम की भिन्नता होती है । जिन व्यक्तियों की बाजार में साख हो और उनके व्यवसाय में जोखिम कम हो तो उन्हें स्वाभाविक रूप से कम ब्याज पर बाजार में पूँजी उपलब्ध हो जाती है ।

(ii) ऋण की अवधि में अन्तर (Difference in Period of Loan):

यदि ऋण की अवधि अधिक हो तो ऋणदाता को अधिक समय के लिए तरलता से वंचित होना पड़ता है और यह भी हो सकता है कि उसे अपनी वर्तमान आवश्यकताओं का त्याग करना पड़े । इसी कारण लम्बी अवधि के ऋण पर बाज अधिक होगा ।

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(iii) बन्धक वस्तु में अन्तर (Difference in the Security of Loans):

जब कोई व्यक्ति सोना, चाँदी, मकान, जेवर आदि गिरवीं रखकर ऋण लेता है तो ब्याज की दर कम होगी । कुछ ऋणदाता व्यक्तियों की जमानत पर भी ऋण देते हैं । जमानत न हो तो पैसा डूबने का बहुत अधिक भय रहता है ।

(iv) असुविधाओं में अन्तर (Difference in Inconvenience):

ब्याज दर की भिन्नता असुविधा की मात्रा पर भी निर्भर करती है । ऋणदाता को जितनी अधिक असुविधा सहन करने की सम्भावना होगी उतनी ही ब्याज दर अधिक होगी ।

(v) प्रबन्ध की लागत में अन्तर (Difference in Cost of Management):

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ऋणदाता को ऋण के प्रबन्ध पर जितनी अधिक लागत सहनी पड़ेगी उसी आधार पर ब्याज दर में भी अन्तर होगा ।

(vi) ऋण के उद्देश्य में अन्तर (Difference in Motives of Loan):

यदि ऋण अनुत्पादक कार्यों के लिए लिया जाये जैसे – विवाह, सामाजिक संस्कार, उपभोग की वस्तुओं की खरीद आदि तब उस स्थिति में ब्याज की दर अधिक होगी और यदि ऋण उत्पादक कार्यों के लिए लिया जाये तो ब्याज दर कम होगी ।

(vii) पूँजी की गतिशीलता (Mobility of Capital):

यदि पूँजी की गतिशीलता अधिक हो तो ब्याज दर कम होगी । विकसित देशों में अविकसित देशों की तुलना में पूँजी की गतिशीलता अधिक होने के कारण ब्याज दर कम होती है ।

(viii) साख संस्थाओं में अन्तर (Difference in Credit Institutions):

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जिन स्थानों पर साख संस्थाएँ विकसित हों वहाँ ब्याज की दर उन स्थानों की अपेक्षा कम होगी जहाँ साख संस्थाएँ अविकसित हों ।

(ix) प्रतियोगिता (Competition):

यदि साख बाजार में प्रतियोगिता हो तब ब्याज दर कम होगी । यदि साख बाजार में एक ही व्यक्ति हो अथवा कुछ व्यक्ति मिलकर एकाधिकार स्थापित कर लें तब ब्याज की दर अधिक होगी ।

Essay # 4. क्या ब्याज की दर शून्य हो सकती है ? (Can Interest Rate Become Zero?):

सामान्यतः ब्याज की दर शून्य नहीं होती । तरलता जाल (Liquidity Trap) यह बताता है कि ब्याज दर की एक न्यूनतम सीमा (Minimum Ceiling) होती है जिस पर समस्त मुद्रा नकद रूप में रखी जा सकती है किन्तु वह शून्य नहीं हो सकती ।

ब्याज की दर दो परिस्थितियों में शून्य हो सकती है:

1. यदि समस्त आय उपभोग कर ली जाये अर्थात् कोई बचत न हो, तथा

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2. अर्थव्यवस्था में पूँजी की मात्रा इतनी पर्याप्त अथवा अधिक हो कि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता शून्य हो जाये । पूँजी की सीमान्त उत्पादकता के शून्य होने की दशा में ब्याज दर भी शून्य हो जायेगी ।

किन्तु गत्यात्मक अर्थव्यवस्था (Dynamic Economy) में कुछ ऐसे तत्व क्रियाशील रहते हैं जिनके कारण अर्थव्यवस्था में पूँजी की सीमान्त उत्पादकता शून्य नहीं हो पाती ।

इन तत्वों में प्रमुख हैं:

(i) बढ़ती हुई जनसंख्या

(ii) प्राकृतिक विपदाएँ जैसे – सूखा, अकाल, भूकम्प आदि तथा

(iii) नवीन खोजें एवं आविष्कार (Innovations)

इन तत्वों की उपस्थिति के कारण ब्याज की दर शून्य नहीं हो पाती ।